कौआ और बन्दर
बाल कहानी- कौआ और बन्दर
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एक पेड़ पर एक कौआ अपने दो बच्चों के साथ आराम से रहता था। एक दिन बहुत तेज तूफान आया। बहुत तबाही हुई। उसी तबाही में कौए का घर भी उजड़ गया। कौआ अपने बच्चों के साथ जान बचाकर उड़ते-उड़ते बहुत दूर निकल गया।
कौए को अचानक एक बड़ा सा पेड़ दिखाई दिया, जिस पर कोई परिन्दे नहीं थे। कुछ दिन कौए ने उस पेड़ के पास रहकर देखा कि कहीं ये किसी का घर तो नहीं।
काफी दिनों बाद भी कोई उस पेड़ के पास नहीं आया तो कौआ उस पेड़ पर अपने बच्चों के साथ रहने लगा।
एक दिन अचानक उस पेड़ पर एक बन्दर आया और आते ही कौए से लड़ने लगा। कहने लगा-, “मैं कुछ दिनों के लिये काम से बाहर क्या गया, तुमने मेरे घर पर कब्जा कर लिया। ये मेरा घर है। खाली करो, वरना ठीक नहीं होगा।”
कौए ने तुरन्त माफ़ी माँगी और अपने बच्चों के साथ जाने लगा तो बन्दर को तरस आया। बन्दर बोला-, “ठीक है! तुम सब रह सकते हो, पर पेड़ के सिर्फ़ उस हिस्से पर, मैं इस तरफ इधर रहूँगा। अगर इस तरह से तुम सब ठीक तरह से रहोगे तो ये आधा पेड़ तुम्हारा और आधा मेरा।”
बन्दर की बात सुनकर कौआ और उसके बच्चे बहुत खुश हुए। सब मिल-जुलकर खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
शिक्षा-
मिल-जुलकर कार्य करने और एक-दूसरे की बात मानने से सभी समस्याएँ हल हो जाती हैं।
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)