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20 Dec 2020 · 6 min read

कोहिनूर की दोहे

कोहिनूर की दोहे संग्रह
★★★★★★★★★★★★★★★★
//1//
सत्यनाम के ज्ञान का,करो हृदय में ध्यान।
गुरुवर की पाकर कृपा,बनना परम महान।।
//2//
सत्य वचन नित बोलिए,यह मिश्री का घोल।
तन मन को पावन करें,अनुपम मीठे बोल।।
//3//
पावनता मन में रहे , फैले ज्ञान प्रकाश।
दर्पण सम स्वछन्द हो,जीवन का आकाश।।
//4//
तीरथ चारों धाम का,गुरुवर का आशीष।
गुरुवर की जब हो कृपा,तभी मिले जगदीश।।
//5//
सत्यनाम सुखधाम है,जब हो मन में ज्ञान।
सच के राहों में चलो,करके विधि विधान।।
//6//
मानव तन दुर्लभ सखा,ईश्वर का वरदान।
कुछ तो अपने जन्म में,कर लेना अवदान।।
//7//
मानवता सब में रहे , सुखमय हो संसार।
सरल सहज व्यवहार से,जीवन का आधार।।
//8//
जग के कण-कण में बसें,जग पालक का नाम।
गुरुवर के आशीष बिन,कहाँ मिले पुर धाम।।
//9//
दुष्कर भारी है सखा,जीवन का संघर्ष।
कठिन परिश्रम से मिले,सुख वैभव उत्कर्ष।।
//10//
कोहिनूर मन से करो,नित गुरुवर का ध्यान।
तभी जगे मनभाव में,शुभकर पावन ज्ञान।।
//11//
गुरु के पावन धाम में , मंत्रो का गुंजार।
जिसके पुण्य प्रताप से,सुखमय हो संसार।।
//12//
सेवा से बढ़कर नहीं,इस दुनिया में धर्म।
प्रेम बढ़े संसार में , करना ऐसा कर्म।।
//13//
सहयोगी बनिये सदा,देना सबका साथ।
तभी सहज सब कर्म हो,थाम हाथ में हाथ।।
//14//
मानव अपने कर्म से,बनता परम महान।
जो बोये काटे वही,जग का परम विधान।।
//15//
दिन दुखी को देख कर,करना नहीं गुमान।
जग पालक ने है भरा,सब में प्राण समान।।
//16//
अंतस में जब ज्ञान हो,फिर क्यो बढ़े अधर्म।
दुष्ट प्रवित्ति त्याग कर,शुभ करना सब कर्म।।
//17//
मनुज मनुज सब एक है,फिर क्यों है मन द्वेष।
मत करना कलुषित करम,धर दुष्टों का भेष।।
//18//
जीवन के संघर्ष में,मिले सभी एक संग।
भेद भाव सब दूर हो ,बहे प्रेम के संग।।
//19//
मानवता कायम रहे , शुभ रहे सब कर्म।
सरल सहज समझे सभी,इस जीवन का मर्म।।
//20//
दया धरम मन में रखो,कर सबका सम्मान।
बन प्रतीक उत्थान की,नित करना अवदान।।
//21//
सद्कर्मो की हो सदा,मन में पुण्य प्रकाश।
मानवता से हो भरा,जीवन का आकाश।।
//22//
जग से जो भी मिल रहा,सद्कर्मो का पुण्य।
त्याग हृदय से धर्म को ,हो जाओगे शून्य।।
//23//
कोहिनूर जंजाल में , क्यों पड़ते है लोग।
पछताते है अंत में , स्वयं लगाकर रोग।।
//24//
प्रेम भाव मन में रखो,मत करना अभिमान।
बन मिसाल उपकार की,कर लेना अवदान।।
//25//
बेटी घर की शान है , महकाती घर द्वार।
जग में करती नाम निज,पाकर शुभ संस्कार।।
//26//
बेटी खुशबू बाग की,बेटी शुभ वरदान।
जब मौका मिलता इसे,करती है अवदान।।
//27//
बेटी से ही है सुरभ,खुशियों की मुस्कान।
यह भी दुनिया में करें,पावन कर्म महान।।
//28//
मात पिता की लाडली,पाकर प्रीत दुलार।
धन्य बनाती है सदा , बाबुल का संसार।।
//29//
बेटी बसती है सदा,बाबुल के मन प्राण।
और बुढ़ापे में यहीं,दे बाबुल को त्राण।।
//30//
कोहिनूर नित ही करो,बेटी का सम्मान।
इससे बढ़कर है कहाँ,इस जग में अवदान।।
//31//
घर को नित पावन करे,बेटी के शुभ बोल।
पैंजनिया के स्वर मधुर,ज्यों मधुरस का घोल।।
//32//
जो माता बेटी जने,उसका जीवन धन्य।
बेटी जब आगे बढ़े,सुख ही मिले अनन्य।।
//33//
धन बल पद नित चाहता,रहकर भी संभ्रांत।
मानव की मति देख मैं,स्वयं हुआ उद्भ्रांत।।
//34//
बेटी जब संसार में,ईश्वर का वरदान।
क्यों पाती है वेदना,करके भी अवदान।।
//35//
लक्ष्य तभी मिलता सखे,पुष्ट रहे जब पाँख।
भला-बुरा पहचानता,दिव्य मिले जब आँख।।
//36//
पुण्य परम हो भावना,मन-वाणी हो शुद्ध।
तब ही मानव को मिले,सुख-वैभव अनिरुद्ध।।
//37//
आर्तनाद करना नहीं,रखना मन में धीर।
चाहे दुख कितनों मिले,मत होना गंभीर।।
//38//
ईश्वर ने अनुपम किया,जग में परम प्रबंध।
पुहुप खिले जब डाल पर,फैले तभी सुगंध।।
//39//
चम्प चमेली मोंगरा , बेला और गुलाब।
बाग केकती केवरा,कमल खिले तालाब।।
//40//
प्रभु चरणों में जब चढ़े,करता बेड़ापार।
मान बढ़ाए जीत में,बनकर गर में हार।।
//41//
कुंतल में गजरा बने,और सजाएं सेज।
पुष्पों की महिमा अमर,बना दिया रंगरेज।।
//42//
गुलमोहर गुलमेहंदी,रक्तिम पुहुप पलाश।
भरे रात रानी सदा,तन मन में विश्वास।।
//43//
पुहुप बिना संसार में,बने कहाँ से बाग।
करे भ्रमर भी पुष्प से,परम पुण्य अनुराग।।
//44//
कोहिनूर संसार में,सब हो शुभ अनुकूल।
नित्य सजे मन बाग में,सुरभित गंधिल फूल।।
//45//
सूर्योपासना से करो , छठ पूजा की रीति।
मान परम त्यौहार को,बढ़े सभी संग प्रीति।।
//46//
जिज्ञासा मन में बढ़े,तब मिलती है सीख।
बिना चढ़े चरखा कहाँ , मीठे रस दे ईख।।
//47//
तब ही मिलता है सखे,सिर को छत की त्राण।
जब मन से मानव करे,निज घर का निर्माण।।
//48//
लूट रहे हैं अस्मिता , दुष्ट अधर्मी आज।
कैसे बेटी का बचे,इस दुनिया में लाज।।
//49//
घटना वह भी कर रहे,जो घटते है नित्य।
तभी बुराई धार ली,बनने को आदित्य।।
//50//
छाए जब आकाश में , बदरा जब घनघोर।
अपनी खुशियाँ कर प्रगट,नाच रहा हैं मोर।।
//51//
पूरी – पूरी ढाँक ली , मेघों ने आकाश ।
पावस में दिखता नही,अब तो सूर्य प्रकाश।।
//52//
माँ के कृपा प्रसाद से , हो विघ्नों का नाश।
जन्म सफल हो भक्त का,पाकर पुण्य प्रकाश।।
//53//
पावनता मन में रहे , फैले ज्ञान प्रकाश।
दर्पण सम स्वछन्द हो,जीवन का आकाश।।
//54//
फुलझड़ियों के रौशनी,करता दीप प्रकाश।
धनतेरस से है सुरभ,यह धरती आकाश।।
//55//
मुख मुखरित मुस्कान हो,और मधुर हो बोल।
यह धन जब पाता मनुज,बड़ जाता है मोल।।
//56//
मुख मंडल के तेज से , जीते जो संसार।
जन-जन से पाता वही,शुभता का व्यवहार।।
//57//
मुख वह शुभ जिसमें रहे,मधुरिम मीठे बोल।
पर मानव नित ही करे,जग से द्वेष किलोल।।
//58//
मुख में राम रखे सदा , और हृदय में द्वेष।
शुभ कब होते वह मनुज,करते नित्य कलेष।।
//59//
सुविधा के वशीभूत हो,आज मनुज है मौन।
वरन स्वच्छ मुख को करे,छोटा सा दातौन।।
//60//
समय बड़ा बलवान है,करो समय का मान।
भाग्य भरोसे मत रहो,तभी मिले पहचान।।
//61//
बनते जो सुखमय सदा,मिलता प्रेम अनूप।
समय चक्र चलता रहे,सुख दुख अनेक रूप।।
//62//
पिता सदा परिवार का , होता पालनहार।
सत्य समय पहचान कर,करता शुभ व्यवहार।।
//63//
मन में रखना है सदा,पुण्य समय का ध्यान।
नित्य योग उपचार से , काया बने महान।।
//64//
कोहिनूर समझो सदा,पुण्य समय का अर्थ।
पड़ जग के जंझाल में ,समय करो मत व्यर्थ।।
//65//
अपने वाणी में रखो,सुधा सरस रस घोल।
प्रिय है सभी मनुष्य को,अनुपम मीठे बोल।।
//66//
मनुज जनम अनमोल है,सदा रखो यह ध्यान।
और करो संसार में , पावन कर्म महान।।
//67//
रहना चाहो स्वस्थ जब,नित्य बहाना स्वेत।
मानव तेरे जन्म का,यह भी अनुपम भेद।।
//68//
चरण कमल में जो झुके,भक्त जनों का माथ।
तब करते पावन कृपा , तीन लोक के नाथ।।
//69//
त्याग सभी मन द्वेषता,भर लो मन में प्रेम।
तब बरसे संसार में , कोहिनूर नित हेम।।
//70//
माता के दरबार में,चलो झुकाये शीश।
मिलता है समभाव से,भक्तों को आशीष।।
//71//
यशोगान होने लगा , माँ के पावन धाम।
इस भक्ति में डूबकर, बनते भक्त महान।।
//72//
माँ के कृपा प्रसाद से , हो विघ्नों का नाश।
जन्म सफल हो भक्त का,पाकर पुण्य प्रकाश।।
//73//
पुष्पों की बरसात कर, जगदम्बे के पाँव।
तर जाएँ संसार से , पा ममता की छाँव।।
//74//
बाज रहा है धाम में,ढोलक झाँझ मृदंग।
कोहिनूर झूमो सभी,पा भक्ति का रंग।।
//75//
काल रात्रि की आज है,सजा हुआ दरबार।
जप कर इनके नाम को,भक्त हुए भवपार।।
//76//
जगदम्बे मातेश्वरी , देती है शुभ ज्ञान।
भक्तों की रक्षा करें,बनकर कृपा निधान।।
//77//
कोहिनूर मन से करो,द्वेष कपट का त्याग।
तब जागे मनभाव में,भक्ति का अनुराग।।
//78//
परम पुण्य नवरात्रि में,कर लो माँ का ध्यान।
सुख वैभव शुभ श्रेष्ठता,और मिले शुचि ज्ञान।।
//79//
पुण्य करो मनभाव को,और निखारो गात्र।
धन्य बनाओ जन्म को ,आया है नवरात्र।।
//80//
चंदन में लिपटे रहे , भले गरलमय नाग।
पर शीतल चंदन करे,सभी बुझाकर आग।।
//81//
चंदन गर कानन रहे , महक बिखेरे नृत्य।
मात लगे तो दे चमक,जैसे हो आदित्य।।
//82//
जब माथे चंदन लगे,बढ़ता मुख में ओज।
जिसके पुण्य सुगंध का,करता मन है खोज।।
//83//
भ्रमर पुहुप को देखकर,करता है गुंजार ।
हृदय समर्पण भाव भर,हर पल बाँटे प्यार।।
//84//
ईश्वर के आशीष से,पाकर प्रेम अनन्य।
स्वर्णिम सपनों से करो,नित जीवन को धन्य।।
//85//
प्रेममयी संगीत का , सुरभित रहे निनाद।
अंतस् में जब ज्ञान हो,फिर क्यों बढ़े विषाद।।
//86//
परिपाटी को देश की,जिसने दी पहचान ।
पहन वसन खादी बने,गाँधी परम महान।।
//87//
सहयोगी उनके बनो,जो जन हो भयभीत।
गहन कलुषमय रात में,जुगनू सम मन मीत।।
//88//
सुख शांति और समृद्धि,पुण्य धरा है सार।
निज परिश्रम भुजबल से,तब हो बेड़ापार।।
//89//
पुण्य कर्म में अग्रसर,बढ़ता नहीं हैं हाथ।
मानव निज जीता है,भाग्य सहारे साथ।।
//90//
कोहिनूर करते सदा , नित्य परिश्रम आज।
चमक उनकी आभा में,करता निज वह काज।।
//91//
जब जीवन में धैर्य हो,तभी बने सब काम।
प्रभु पग में विश्वास कर,भक्त बने हनुमान।।
//92//
छोटी-छोटी बात पर,करते कब हैं युद्ध?
जग उजियारा के लिए,करते कर्म प्रबुद्ध।।
//93//
आज जगत में है सखा,बहुत बड़ा यह रोग।
सदा लगाता है मनुज,दूजो पर अभियोग।।
//94//
परिपाटी से उठ रहा,सबका आज लगाव।
दक्षिण का बढ़ने लगा,खान-पान,पहनाव।।
//95//
मानवता के बिन यहाँ,पूर्ण कहाँ कब काम?
दया धरम के भाव में,कर्म करो निष्काम।।
//96//
सुख वैभव धन धान्य का,धनतेरस है पर्व।
पुण्य रीत यह देश का,मन में भरता गर्व।।
//97//
धनतेरस के दीप से , उज्ज्वल हो घर बार।
और जीत ही जीत हो,मिले कभी मत हार।।
//98//
माँ लक्ष्मी की हो कृपा,तब मिलता सुखसार।
धनतेरस के पर्व से , सुरभित है संसार।।
//99//
धनतेरस शुभ आ गया,शुभ-लाभ के संग।
सुरभित वंदन वार में,खुशियाँ रंग बिरंग।।
//100//
फुलझड़ियों के रौशनी,करता दीप प्रकाश।
धनतेरस से है सुरभ,यह धरती आकाश।।
★★★★★★★★★★★★★★
स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे, “कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 392 Views
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