कोहिनूर की दोहे
दोहा सृजन
★★★★★★
कोकिला
कूक रही है कोकिला , बैठी अमुआ डाल।
ताके दुष्ट बहेलियाँ , ले हाथों में जाल।।
आकाश
सूरज की किरणें धवल,जब करती उजियार।।
धरती से आकाश तक , तब सुरभित संसार।
अगहन
अगहन में करते सभी , लक्ष्मी का गुणगान।
तब माता होकर प्रगट , देती है वरदान।।
अलाव
ठंड भगाने के लिए , घर-घर जले अलाव।
सेक रहे निज तन सभी , लेकर मद्धिम ताव।।
खंजन
चूजों को निज छोड़कर ,उड़-उड़ करती खोज।
सोच रही खंजन कहीं , कुछ तो पाऊँ भोज।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वरचित©®
डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
छत्तीसगढ़(भारत)