कोहरा
कोहरा
सुबह की नर्म धूप में हल्का गंधला कोहरा है जिसमें अक्सर चलते-चलते तुम्हें देखता हूं।हल्की स्निग्ध ठंडी हवा में तुम्हारी आंखों के कोर भीग जाते हैं तुम्हारे दोनों हाथ मेंहदी रंग के मखमली शाल में सिमटे हैं और एक सूखी-सी मुस्कुराहट के साथ तुम एक आकृति को सामने देखते हो और बिना किसी प्रतिक्रिया के आगे बढ़ जाते हो।हरी घास पर चलते हुए तुम एक मर्तबा पलटकर देखते हो वो आकृति अभी भी तुम्हें देख रही है बिना हिले ढुले जड़वत!
अक्सर राह में लोग मिल जाते हैं कोई अच्छा होता है कोई बहुत अच्छा और कोई बुरा भी होता है।कहीं भी मानसिक संतोष मिल छाए तो यकीनन ज़िन्दगी सुकुन भरी हो जाए।अब इस भागती दौड़ती ज़िन्दगी में यह ज़रूरी तो नहीं कि किसी से मिला जाए और यदि किसी से मिल भी लिया जाए तो उससे मिलना लाभकारी होगा।ये तो स्वयं पर निर्भर करता है कि किससे बात की जाए मित्रता की जाए या प्रेम किया जाए पर ऐसा कतही ज़रूरी नहीं कि हर मिलने वाले से मित्रता की जाए यह ख़ास आकर्षण किसी ख़ास में ही होता है जिससे बात करने को मन करे घंटों उसकी राह देखते रहें फिर यह ज़रूरी भी तो नहीं कि प्रेम के लिए किसी से मिला जाए या वो अमूक हमारे संग हो।प्रेम एक अंतरंग अनुभूति है जिसमें साध्य सजीव निर्जीव कुछ भी हो सकता है किसी की प्यारी-सी मुस्कुराहट ही पर्याप्त है कोई उम्दा किताब या नदी के बहते जल पशु-पक्षियों का कलरव घुमड़ते बादल या नर्म धूप की पहली किरण कहीं भी इसे अनुभव कर सकते हैं।
कुछ भी सुलभ नहीं फिर किसी से बलात् नहीं जुड़ सकते।बिना कभी किसी से मिले या उसे सुने भी अनुभूत कर सकते हैं पर ये कला (खूबी) या संप्रेषण सभी में कहां।कल मेरा ख़ास दिन है एक-एक पल जिसे मैं महसूस करूंगा वैसे ही जैसे सुबह की नर्म धूप की पहली परत को ज़मी पर गिरते हुए देखकर महसूस होता है एक नयी स्फूर्ति और उनके मध्य पक्षियों की चहचहाहट एक मीठा स्वर जिसे प्रयास करने पर भी हुबहू नहीं निकाल सकते केवल महसूस कर सकते हैं।
हल्की नर्म धूप पीली शाम में व्याप्त होने लगेगी।शाम के अंतिम पढ़ाव पर एक आकृति तुम्हारे संग होगी जो शायद तुम्हें न दिखाई दे पर तुम उसे अपने साथ महसूस करोगी।
दिन का महत्व रंग पर निर्भर होने लगता है कोई भी ख़ास रंग जिसमें हम स्वयं को आश्वस्त कर सके कि हम सफल होंगे और अवश्य होंगे।देह पर कोई भी रंग हो उस छवि को ज़रूर सहज लेना चाहिए ताकि उन ख़ास क्षणों को अपने ख़ास लोगों तक पहुंचा सके।
मेरा मानना है कि जो दिल को सुकुन दे स्वयं को आनंदित करे उसी ओर बढ़ना चाहिए।घर से निकलते वक्त पहला कदम दायां निकालना चाहिए इससे मनोवल बढ़ जाता है और एक-एक कदम सफलता की ओर अग्रसर करने लगती है पर बायें में भी बुराई नहीं ये तो मन की सोच है।
कुछ भी जिसके लिए बार-बार मिन्नते करनी पड़े ज़रूरी नहीं अब वो दिल से ही मिले।किसी ख़ास का साहचर्य क्षण भर भी मिल जाए वही काफी है फिर दो अलग-अलग स्थान जिसमें शायद ही कभी गुज़रना पड़े किसी भी तरह का मलाल रखने की आवश्यकता नहीं दिखाई देनी चाहिए।यह तो एक सहज प्रक्रिया है जहां मानव स्वभाव जाने क्यों किसी अमूक से जुड़ना चाहता है ना चाहते हुए भी रोज़ वहीं पहुंच जाता है जहां कल उसने न जाने का प्रण लिया था।बेवजह किसी को ठेस पहुंचाना मनुष्य का कर्म नहीं दूसरे की खुशी को ही आनंद समझना चाहिए वैसे ही जैसे मुस्कुराने के लिए होठ किसी के लरजते हैं पर खुशी की झलक दूसरे के चेहरे पर दिखाई देती है।
शाम की ठंडी उदासी में भी चेहरा मुस्कुराते रहना चाहिए।दिन भर के श्रम-कर्म और भाग-दौड के सब अभ्यस्त नहीं पर किसी ख़ास प्रयोजन के लिए कदम खुद ब खुद दौड़ने लगते हैं।काश सबकुछ देखा जा सके उस पल को सुना जा सके पर फिर भी उसे महूसस तो किया ही जा सकता है।चेहरे की उद्गिनता
पेशानी से निकलता पसीना और थकी आंखों में सहजता हो प्रेम हो मुस्कुराहट हो सजीव हो।कोई किसी के लिए बहुत ख़ास होता है तो कोई दूसरे के लिए कुछ भी नहीं।मैं कुछ भी नहीं होकर भी उस ख़ास के लिए एक प्रेरक बिंदू होना चाहता हूं।मैं जानता हूं कि ये मेरा तात्कालिक उद्वेग है जो मेरे लिए आज सर्वोपरि है पर दूसरे के लिए कुछ भी नहीं।वो मुझे याद भी नहीं रखेगा मैं इसे भी जानता हूं पर ये तो व्यक्ति स्वभाव है इसके लिए मन में किस बात का फिर शिकवा रखना।
शायद कोई किसी से कभी न मिले और फिर क्यों मिले।कोई किसी को जानता भी तो नहीं और अनजान व्यक्ति को क्यों इतनी तरज़ीह दी जाए।ये मेरे लिए कोई विस्मय की बात नहीं ईश्वर के चेहरे की कांति क्षणिक भी यदि मुझे दिखाई दे जाए तो वह भी मेरे लिए पर्याप्त होगी।यकीन मानिए मुझे बिल्कुल मलाल नहीं होगा जो तुम बदल गये भी तो या मुझे याद न रख पाए तो पर मैं जिसे एक बार महसूस करता हूं वो सर्वोपरि होता है।
दो आकृतियां जिन्होंने पल भर एक दूसरे के सुकुन से देखा।सुबह का उजास और फिर गंधला कोहरा जिसमें दोनों चेहरे गुम हो गये उन्हें खोजने के लिए एक सभ्य सोच के साथ-साथ पैनी नज़र चाहिए।हर आदमी त्रुटियों से सीखता है पर धीरे-धीरे परिपक्वता
आने लगती है व्यक्तित्व में सोच में..।
मनोज शर्मा