कोहरा
कोहरा
कोहरा कौन है तुमसे डरता ?
सुबह सवेरे जैकेट पहना गली-मोहल्ला घूम कर आया
सड़क पर तूं पड़ा था लेटा।
फुदकना चिड़ियों का बंद नहीं था
भले डाल पर तूं लटका था
तुमने बहुत सुलाना चाहा
फिर भी सड़क कहां सोई थी?
गाड़ी वाले भी भाग रहे थे
भले वे इक्के-दुक्के ही थे।
बच्चे मां की गोद छोड़कर
बैडमिंटन छत पर खेल रहे थे
कुछ बापू संग पार्क में पहुंचे
कर रहे अभ्यास किरकिट का थे।
दूध की गाड़ी भी आई थी
हां, दूध दुकान के बाहर था
दुकान पर ताला लटक रहा था
क्योंकि ताले पर तूं बैठा था।
चिंता मुझे भिखारिन की थी
वृद्धा जो मंदिर पर बैठी
दाताओं को तुमने रोका था
जिनकी उसे प्रतीक्षा थी।
**********””*****”””****”****************६ —-राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/ स्वरचित।