कोरोना
दोहों में कोरोना
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अपनी करनी से हुआ , दो कौड़ी का चीन ।
खुद की लाशों पर मुआ , बजा रहा अब बीन ।।
कोरोना ने कर दिया , सबकुछ मटियामेट ।
राजा हो या रंक हो , सबको दिया रपेट ।।
औषधियों का देश है , अपना भारत वर्ष ।
यह दुःसाध्य न वायरस , जिसे कहें दुर्धर्ष ।।
कोरोना डायन मुई , देख-देख हलकान ।
लोग कहाँ गायब हुए , सड़कें क्यों सुनसान ।।
कोरोना के खौफ़ से , सड़क हुई बीरान ।
घर में दुबका है पड़ा , बेबस अब इन्सान ।।
कुछ दिन की तो बात है , घर में रहिए बन्द ।
छंदःशाला खोलिए , और बाँचिए छंद ।।
कैसे-कैसे लोग हैं , अजब-गजब संसार ।
जो कुछ सुनते ही नहीं , उनका क्या उपचार ।।
चन्द्र गया , मंगल गया , जीते सब नक्षत्र ।
पढ़ने में असमर्थ है , कोरोना का पत्र ।।
कोरोना लरछुत बहुत , अति संक्रामक भूत ।
चीन देश से भागकर , आया है अवधूत ।।
मन से विनती कीजिए , माता को कर जोड़ ।
कोरोना की कमर को , जल्दी से दें तोड़ ।।
चिन्ता तनिक न कीजिए , कृपा करेंगे रुद्र ।
डमरू की आवाज से , भागेगा यह शूद्र ।।
घर के अंदर ही रहें , संयम बरतें रोज ।
वैज्ञानिक जबतक नहीं , औषधि लेते खोज ।।
विकट समय की है घड़ी , विपदा है घनघोर ।
ऐसे में कैसे लगे , सुखद-मनोरम भोर ।।
कोरोना से ग्रस्त हों , तभी रहें दूरस्थ ।
साथ प्यार से बैठिए , अगर आप हों स्वस्थ ।।
सुनीं सब गालियाँ पड़ीं , सूने हैं चौपाल ।
मुखिया जी घर में पड़े , बजा रहे हैं झाल ।।
कोरोना से हारकर , नहीं बैठना मित्र ।
संयम से घर में रहें , स्थिति है बड़ी विचित्र ।।
कोरोना को मारना , अगर हमें है यार ।
घर में रहना बन्द ही , एकमात्र उपचार ।।
कोरोना बाए खड़ी , मुंह ले मेरे द्वार ।
घर में रहना बन्द ही , मेरा भीषण वार ।।
कोरोना की मार से , सारा जग बेचैन ।
डर के मारे ट्रम्प के , कातर हैं अब नैन ।।
– विजय गुंजन