*कोरोना ने बदल दी जिंदगी (हास्य व्यंग्य)*
कोरोना ने बदल दी जिंदगी (हास्य व्यंग्य)
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कोरोना से जहाँ बहुत से नुकसान हुए ,वहीं कुछ फायदा भी हो रहा है । साबुन से हाथ धोने की आदत सबको पड़ गई । पहले समझाते थे कि खाना खाने से पहले साबुन से हाथ धोना आवश्यक है। लेकिन अब बगैर समझाए सब लोग समझने लगे हैं और कोरोना से बचने के लिए कुछ भी खाने से पहले हाथों को धोना अपना कर्तव्य समझते हैं । घर दुकान दफ्तर सब जगह हाथ साफ रखने की प्रवृत्ति बढ़ने लगी है । सबको मालूम है कि गंदगी के बीच में कोरोना पनपने की संभावना रहती है । समय-समय पर साबुन से हाथों को धोने की आदत बढ़ी है । सैनिटाइजर से हाथों को साफ करना एक आम बात होने लगी है । सबसे खास बात यह देखने में आई कि स्थान – स्थान पर थूकने की प्रवृत्ति के खिलाफ एक माहौल बना है । पहले जिसे देखो जब चाहे जहाँ चाहे थूक दिया । सड़क पर चलते-चलते थूकना एक आम बात थी। लेकिन अब जागरूकता आई है और लोग यह समझने लगे हैं कि हमारे द्वारा थूकने से समाज में कोरोना फैल सकता है , इसलिए यह एक बुरी आदत है ।
घरों में अनेक वर्षों से यह योजना दिमाग में चल रही थी कि बाहर की चप्पलें घर के दरवाजे पर ही दहलीज में उतरवा ली जाएँ। तथा घर के अंदर घूमने – फिरने के लिए अलग से चप्पलें रहें। लेकिन यह योजना केवल कोरोना – काल में ही अमल में आ पाई । कोरोना की प्रेरणा इतनी जबरदस्त थी कि देखते ही देखते सभी की चप्पलें घर के दरवाजे के पास दहलीज में उतरने लगीं। और अपने घर की चप्पल पहन कर घर के अंदर सब सदस्य जाने लगे। इन सब से भी घर में साफ सफाई और बढ़ी तथा बाहर की गंदगी चप्पलों के द्वारा घर के कमरों में जाना रुक गई । कोरोना न होता तो यह सब किसी भी प्रकार से संभव नहीं था।
कोरोना के कारण जीवन में सादगी का प्रवेश हो गया । अब बहुत ज्यादा सुंदर कपड़े पहनना तथा तड़क-भड़क के साथ जीवन व्यतीत करना आकर्षण का विषय नहीं रहा । रोजाना अखबार में कोरोना के कारण लोगों को बीमार होते देखते हुए तथा कुछ की मृत्यु भी होते हुए जब देखते हैं तो शरीर नश्वर तथा संसार नाशवान जान पड़ता है । अब जब ऐसा दार्शनिक विचार सबके हृदय में प्रवेश करने लगेगा, तब जीवन में तड़क-भड़क तथा मिथ्या अहंकार को टिकने की गुंजाइश ही कहाँ रहेगी ? सीधे-सादे मामूली कपड़े पहनकर लोग बाजारों में चले जाते हैं । शादी – ब्याह में तो आजकल किसी के जाने का प्रश्न ही नहीं उठ रहा। इसलिए थोड़े बहुत जरा – अच्छे कपड़े भी पहनने वाली बात की आवश्यकता नहीं रही।
हर आदमी शरीर की साफ-सफाई पर ध्यान दे रहा है । ऐसे में अब इस बात की संभावना बहुत कम हो गई है कि किसी के पास से गुजरो तो दुर्गंध आए । लेकिन उसका भी मूलभूत इलाज कोरोना – काल में ढूँढ लिया गया है । दो गज की दूरी सबसे बनाकर रखी जा रही है और कोई भी ऐतराज नहीं कर सकता कि आप हमारे से इतनी दूर खड़े क्यों है ? किसी से हाथ मिलाने का तो प्रश्न ही अब नहीं हो सकता । वरना पहले तो किसी के हाथ धुले हुए हैं अथवा गंदे हों, लेकिन फिर भी अनिच्छापूर्वक हाथ मिलाना पड़ता था । अब वह मजबूरी नहीं रही ।
मुख पर मास्क लगाकर चलने से सड़कों पर स्थान – स्थान पर , गलियों में जो दुर्गंध आती थी ,वह भी अब नहीं आती । जब मुँह पर मास्क है ,तब नाक में दुर्गंध भला कैसे प्रवेश करेगी ? कोरोना से फायदे तो बहुत हो रहे हैं लेकिन लोग अभी सचेत नहीं हो रहे हैं ।
सबसे बड़ी क्रांति तो मोबाइल के मामले में आई है अब हर चीज ऑनलाइन हो गई है । आठ – सात साल के बच्चों को जहाँ पहले मोबाइल से दो गज दूर रखा जाता था ,अब उन्हें छह इंच पास बिठाया जाता है तथा समझाया जाता है कि बेटा ऑनलाइन क्लास को अटेंड करो । जो बच्चे मन लगाकर ऑनलाइन क्लास पर ध्यान देते हैं, उनको “अच्छा बच्चा” कहकर तारीफ की जाती है तथा पूरी कॉलोनी में ऐसे बच्चों को विशेष आदर से देखा जाता है। जिन बच्चों के हाथ में आजकल हर समय मोबाइल रहता है ,उन बच्चों को “पढ़ने वाले बच्चे” के रूप में देखा जा रहा है ।अगर कोई बच्चा यह कहे कि उससे मोबाइल चलाना नहीं आता है, तो इसका मतलब यह है कि वह पढ़ाई से जी चुरा रहा है । तब सब लोग उस को समझाते हैं कि बेटा ऐसे कैसे चलेगा ? मोबाइल में दिल लगाना शुरु करो, देखो और दिलचस्पी लो !
सब कुछ ऑनलाइन होने लगा है । विवाह में बराती अपनी उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज कराते हैं । नेताओं की सभाएँ ऑनलाइन होती हैं। विवाह समारोह तथा दाह संस्कार ऑनलाइन होने लगे हैं। लोग मोबाइल लेकर बैठ जाते हैं तथा “गूगल मीट” के द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन ऐसा आएगा , कि हाथ में मोबाइल होगा और उसी से शादी से लेकर अंतिम संस्कार तक के सारे काम ऑनलाइन निबटाए जाएँगे।
कविगणों के एकल पाठ ऑनलाइन होने लगे हैं । बहुत से फेसबुक पेज ऑनलाइन कवियों के प्रसारण की सूचनाओं से भरे रहते हैं । एक अनुमान के अनुसार एक दिन में हर दो घंटे पर ऑनलाइन प्रसारण कविताओं के होते हैं । कई बार जान – पहचान के कवि एक दिन में एक ही समय में टकरा जाते हैं तथा यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि किसकी कविता को ऑनलाइन सुना जाए ?
. ऑनलाइन कवि सम्मेलन कवियों के बीच होने लगे हैं । कविताएँ टाइप होती हैं और व्हाट्सएप समूह में डाल दी जाती हैं। फिर उस कवि सम्मेलन में भाग लेने वाले कवियों के सुंदर चित्र एक ग्रुप बनाकर प्रकाशित होते हैं जो देखने में और महसूस करने में बहुत अच्छे लगते हैं। ऑनलाइन का सुख अपनी जगह है । उसका वर्णन हम पुराने तरीकों से नहीं कर सकते
कोरोना -काल में भी बहुत से लोग मास्क नहीं लगाते हैं। कई लोग मास्क जेब में रखकर घूमते हैं, जैसे यह कोई ताले की चाबी हो । जब उनसे पूछो कि मास्क नहीं लगाया ? तब कहते हैं कि जेब में रखा हुआ है ,जब जरूरत पड़ेगी लगा लेंगे । पुलिस वालों को देखकर अथवा चेकिंग होते देखकर यह लोग जेब से मास्क निकालकर चेहरे पर लगा लेते हैं । कई लोग मास्क लगाते हैं लेकिन उसका लगाना – न लगाना एक जैसा है । मास्क उनकी नाक के नीचे तथा अनेक बार मुख से भी नीचे होता है । कई लोग वैसे तो मास्क लगाकर चलते हैं , लेकिन जब किसी के पास आकर उससे बातचीत करना शुरू करते हैं तब मास्क को नीचे कर लेते हैं अर्थात उनका मास्क लगाना और न लगाना एक बराबर हो जाता है। मास्क को गले के नेकलेस के समान आभूषण की वस्तु के रूप में पहनने वालों की कमी नहीं है । इन सब कारणों से मास्क का जो लाभ होना चाहिए ,वह नहीं हो रहा है तथा कोरोना से पूरी तरह बचाव भी नहीं हो पा रहा । खैर , आशा करनी चाहिए कि लोगों को सद्बुद्धि आएगी और वह स्वस्थ रहने की दिशा में प्रयत्नशील होंगे ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451