कोरोना के कहर पर मोदी से सवाल
कोरोना अब भारत के तमाम शहरों में कहर ढा रहा है. दिन-रात एंबुलेंस के सायरन, श्मशान घाटों में जलती चिताएं और सरकारी-गैरसरकारी अस्पतालों में भीड़, ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड की मारामारी से अब क्या अमीर, क्या गरीब, देश का सभी वर्ग प्रभावित हो रहा है. कोरोना की पहली लहर को तो मरकजियों-जमातियों के सिर मढ़ दिया गया था. यहां तक कि शहर के पढ़े-लिखे लोगों ने भी यह भी सोच रखा था कि यह केवल मुसलमानों की बीमारी है. वे तो इससे बीमार हो ही नहीं सकते. मेरे अनेक परिचितों में से किसी ने अपनी कार या अन्य वाहनों में हनुमान जी द्वारा संजीवनी पहाड़ ले जाती मूर्ति और चित्र बनवा रखे थे तो कई अपने आपको हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने वाला बताते हुए दावा कर रहे थे- उनके घर में क्या, उनके मुहल्ले में भी कोरोना नहीं फटक सकता. इस तरह का दावा करने वाला एक बंदा स्वयं बीमार हुआ और करीब इलाज में साढ़े तीन लाख रुपए की आहुति भी उन्हें देनी पड़ी. इस तरह इस बेशरम-ढीठ-बेरहम तथाकथित मेरिटधारी वर्ग ने मुसलमानों से सब्जी-फल या अन्य दूसरी चीजें भी खरीदना बंद कर दिया था. अगर मुसलमान समाज का कोई व्यक्ति किसी किराना दुकान या मेडिकल दुकान में पहुंचता तो उन्हें हिकारत भरी निगाहों से देखा जाता और उन्हें जल्द समान देकर भगाने की कोशिश की जाती. यह हरकत मैंने प्रत्यक्ष बहुत बार देखी है, इस पर हस्तक्षेप भी किया है, लोगों से बुराई भी ली है. उस दौरान ज्यादातर मरीज भी मुस्लिम इलाके से ही निकाले जा रहे थे. अनेक तरह के झूठे वीडियो वायरल किए जा रहे थे जो कोरोना के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराते नजर आते थे. किसी वीडियो में दिखाया जाता कि मुस्लिम फलों और सब्जियों में थूक लगाकर बेच रहे हैं, कहीं नोटों को थूक कर लोगों के घरों के सामने डाल रहे हैं, नर्सों-डॉक्टरों के ऊपर थूक-मूत रहे हैं. बोतलों में पेशाब भरकर अस्पताल के बाहर फेंक रहे हैं. सोशल मीडिया ही नहीं नफरती गोदी मीडिया ने भी इस तरह की कमीनी हरकतें की. उसके द्वारा ऐसा चित्र पेश किया गया कि जैसे कि देश में कोरोना फैलने के लिए मुस्लिम ही जिम्मेदार हैं. सरकार तो सबकुछ बेहतर कर रही है. आम तौर पर कहा जाने लगा-साले यही लोग कोरोना फैला रहे हैं. इसके बाद फिर प्रवासी मजदूरों को जिम्मेदार ठहराया गया. कोरोना का भी बकायदा निर्लज्जता से राजनीतिक लाभ उठाया गया. कोरोना लॉकडाउन काल में राम मंदिर का शिलान्यास भी कर दिया गया. अगर इसी काल में धूमधाम से किसी मस्जिद का शिलान्यास किया गया होता तो कल्पना कीजिए मीडिया का क्या रुख होता? क्या यह सब देख-सुनकर आपको गुस्सा नहीं आता? कैसे बर्दास्त कर जाते हैं आप यह सब? अभी कुंभ का मंजर भी आपने देखा और इस पर मीडिया की चुप्पी भी देखी.
खैर, बाद में तो फिर यकायक ऐलान ही कर दिया गया कि हमारे महाबली प्रधानमंत्री मोदी के प्रताप से देश से कोरोना भाग गया. जनवरी के अंत में उत्सव जैसा माहौल था, जब भाजपा ने घोषणा की कि मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई जीत ली है. इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, इटली, रूस की ओर भी उंगली उठाई जा रही थी कि वे कोविड को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं, जबकि भारत ने अपनी धरती से घातक वायरस का खात्मा कर दिया. सत्तारूढ़ दल ने तो प्रधानसेवक मोदी को धन्यवाद देते हुए एक प्रस्ताव भी पारित कर दिया कि माननीय मोदी जी ने भारत के मुकुट पर एक और सुनहरा पंख जोड़ा है. भाटगिरी की भी हद होती है यार.
अब फिर कोरोना की दूसरी लहर ने कहर ढाना शुरू किया है, तब बंगाल में लाखों-लाखों जनसमूह की रैलियां हो रही हैं. जिस दिन बंगाल में लाखों की भीड़ को देखकर प्रधानमंत्री गदगद होकर रैली को अद्वितीय बताते हैं, उसी दिन शाम को ‘दो गज की जरूरी, मास्क है जरूरी’ का संदेश भी देते हैं. देश में शीर्ष स्तर के लोगों से ऐसी दोगलाई मैंने अपने जीवनकाल में पहले कभी नहीं देखी-सुनी. उल्लेखनीय बात यह कि अब कोरोना मुस्लिम बस्तियों में उतना उत्पात नहीं मचा रहा है जितना संभ्रांत बस्तियों में. लगता है चीन का यह नास्तिक कोरोना, भारत में आकर पहले इस्लाम कबूल किया और साल भर बाद उसने हिंदू धर्म अपना लिया है. वह अब अपने हिंदू रिश्तेदारों से अधिक मेलजोल बढ़ा रहा है. आपको ज्ञात हो कि अनेक साधु-संन्यासियों, देश की विभिन्न प्रसिद्ध मंदिरों के पुजारियों के साथ-साथ आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत भी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं.
विशेषज्ञ लगातार कोरोना के के खतरों से सरकार को आगाह कर रहे थे कि कोरोना की दूसरी लहर भी देश में आ सकती है. इससे बचाव के लिए वे सरकार को तमाम सुझाव भी दे रहे थे लेकिन सरकार इन सबकी परवाह किए बगैर अपने आपको महाबली सिद्ध करते हुए बंगाल फतह करने की जुगत में जुटी हुई थी. विपक्ष के अन्य दल तो पता नहीं कहां दुबके पड़े हैं लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी पहली लहर के वक्त से ही जनता और सरकार को कोरोना के प्रति लगातार चेताते रहे हैं लेकिन उन्हें पप्पू ठहराकर नजरअंदाज ही किया जाता रहा गया. महाबली 56 इंची और उनकी सेना को बंगाल फतह जो करना था इसलिए वे सब प्रोपोगेंडा करने में लगे थे कि मोदी जी ने कोरोना को मात दे दी. दुनिया के 150 से अधिक देशों यहां से कोरोना की वैक्सीन भेजने का डंका भी पीट दिया गया. हजारों टन ऑक्सीजन का भी निर्यात किया जाता रहा गया. यहां तक कि हमारे दुश्मन पाकिस्तान को भी उन्होंने कोरोन वैक्सीन की लाखों डोज मुफ्त में दे दी. अब जब महामारी ने विकराल रूप ले लिया तो इसके लिए मीडिया और उनके भक्त-चमते आम जनता और किसान आंदोलन को दोष दे रहे हैं. वाह प्रभु मोदी जी, आप वाकई महान हैं और आपके भक्त तो परम महान!
अभी कुछ दिन पूर्व ही जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सरकार से पश्चिमी देशों और जापान में इस्तेमाल होने वाले टीकों को फास्ट ट्रैक आपातकालीन मंजूरी देने के लिए कहा तो भाजपा ने दो केंद्रीय मंत्रियों रविशंकर प्रसाद और स्मृति ईरानी को मैदान में उतार दिया. दोनों चपल-वाचाल मंत्रियों ने राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हुए कहा कि वे अर्थात राहुल गांधी अब पूर्णकालिक ‘लॉबीस्ट’ बन गए हैं. उन्होंने ट्वीट्स की एक श्रृंखला में आरोप लगाया कि पहले उन्होंने लड़ाकू विमान कंपनियों की पैरवी की, अब विदेशी टीकों के लिए मनमानी मंजूरी की मांग कर फार्मा कंपनियों की पैरवी कर रहे हैं. लेकिन मंत्रियों को कुछ घंटों के भीतर ही लीपापोती करनी पड़ी जब प्रधानमंत्री ने कोविड-19 के खिलाफ पात्र विदेशी टीकों (रूस में निर्मित स्पुतनिक वी, फाइजर, मॉडर्ना, जॉनसन एंड जॉनसन और अन्य) को आवेदन करने पर केवल सौ व्यक्तियों पर परीक्षण कर एक हफ्ते के भीतर आपातकालीन उपयोग की मंजूरी दिए जाने की बात कही. संघी दोगलों! अपनी दोगलाई छोड़ो, कुछ ही दिनों पहले कोरोना के चले जाने का जब श्रेय ले रहे थे तो अब कोरोना के इस कोहराम की जिम्मेदारी भी अपने सिर पर लो, जनता और राहुल गांधी से माफी मांगो. सत्ता के लिए मुस्लिमों के प्रति नफरत का जहर बोना बंद करो, कोरोना के लिए जनता को जिम्मेदार ठहराना छोड़ो, देश नहीं बिकने दूंगा का नारा लगाते हुए देश को बेचना बंद करो.