कोरोना की जंग में मूच्छें गंवाई!
मुझे प्यारी थी अपनी मुच्छे,
ज्यादा बड़ी नहीं थी मेरी मुच्छे!
छोटी सी थी मेरी मुच्छे,
पर प्यारी सी थी मेरी मूच्छे!
रखता था मैं उसका ख्याल,
बड़े जतन से रखा था संभाल!
हर रोज उसे सहलाता था,
बढ जाए जो कोई बाल,
कर देता था मै उसे हलाल!
ताव भले ही नहीं देता था,
पर मन ही मन इठलाता था !
अचानक आया ये कोरोना,मेरी मुच्छों को लील गया,
ऐसा कहर बरपाया इसने,सरकारों को भी कंम्प कपा गया!
मेरी तो बिसात है क्या?,बड़े-बड़े घबराये हैं!
कैद हो गए अपने ही घरों में,
दीन हीन से दिख रहे,कुछ करते नही बन पाए हैं!
मैं भी ठहरा हूँ, कमरे. पर रुक कर,
कमरा जो किराये का है!
आए थे हम पति-पत्नी,
अपने बहू बेटे के आमंत्रण पर!
कार्यक्रम तय किया था उन्होंने,
सपरिवार देव दर्शन के भ्रमण पर!
एक यात्रा कर भी ली पूरी,
दूसरी थी अभी अधूरी!
तभी कोरोना-कोरोना का शोर मचा,
आवागमन पर विराम लगा!
अब हम कमरे पर ही हैं ठिठके,
ना दर्शन को जा पाए,और ना ही घर को लौट सके!
थोड़े दिनों की थी यात्रा हमारी,
इंतजाम भी थोड़ा ही किया !
दाढ़ी का तो ख्याल रहा,पर मूच्छ की न चिंता की,
बस यही चूक हो गई,कैंची घर पर ही छूट गई!
दाढ़ी तो बन जाती रही,पर मूच्छों का न इंतजाम हुआ!
मूच्छें थी कि बढ़ती जाती थी,
इधर-उधर बिखर जाती थीं!
कभी संवारता था मैं जिसको,
अब वह मुझ को चिढा रही थी!
एक ओर कोरोना का संकट,
दूसरी ओर मूच्छों की उठक-भटक!
मैं ज्यों-ज्यों उन्हें संवारु,वह बिखर जाएँ,
जितना मैं उसे सहलाऊँ,
उतना ही वह उलझ-उलझ जाएँ!
चेहरा हो रहा था बदरंग,
मूच्छें हो रही थी मलंग-मतंग,
करने लगी थी अब मुझे ही तंग!
मैं भी रह गया था दंग,
मुझे उसने इतना उकशाया,
मेरा धैर्य काम ना आया!
मैंने रेजर उठाया,फिर सीधे मूच्छों पर लगाया!
एक झटके में उन्हें हटाया,
अब चेहरा भी अजीब लगता है,
गुस्सा भी तो अपने पर ही चलता है!
कोरोना तो बेशर्म,निबटा नही है?
मेरी मूच्छों को ही निबटा गया!
हे प्रभु! क्या तेरी यही ईच्छा है।।