कोरोना काल ,
#आयोजन :- रस आधारित गीत
#प्रदत्त_रस :- हास्य रस
#विधा:- दोहा गीत
—————————————————————-
दिल्ली से हम घर चले, छोड़ नगर की हूर।
दिल में थी यह कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
पहुंचे घर पैगाम मिला, कोरेन्टाइन आप।
चौदह दिन करते रहो, कोरोना का जाप।।
समय कठिन सहना पड़ा, अरमां सब काफूर।
दिल में थी यह कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
चौदह दिन व्यतीत हुए, चले ससुर के द्वार।
सोचा था होगा वहीं, जी भरकर सत्कार।।
ससुरारी का हाल क्या, खट्टे थे अंगूर।
दिल में थी यह कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
सासु जी को देख लगा, जैसे मुझमें छूत।
दूर रहो कहती रहीं, ओ समधी के पूत।।
सलहज से दूरी बढ़ी, सपने चकनाचूर।
दिल में थी यह कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
शाली ने इतना कहा, जीजा जाओ आप।
अरमां सब मिट्टी मिले, कोरोना का श्राप।।
ससुरारी का राम वह, आज हुआ लंगूर।
दिल में थी बस कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
कोरोना ने कर दिया, रिश्तों का संहार।
गायब है संवेदना, बदल गया व्यवहार।।
आई कैसी त्रासदी, बन बैठा नासूर।
दिल में थी बस कामना, मिले प्रेम भरपूर।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
——————————————————————–
यह रचना स्वरचित, मौलिक व अप्रकाशित है।