‘कोरोना काल का शिक्षा पर प्रभाव’
‘कोरोना काल का शिक्षा पर प्रभाव’
शिक्षा यूँ तो सतत् प्रक्रिया है। जो जन्म से ही आरंभ हो जाती है और मृत्यु तक चलती रहती है।इसे न स्थान से बाँधा जा सकता है न व्यक्ति विशेष से ।यह सार्वभौमिक है प्रकृति के कण-कण में व्याप्त है। ये तो सूक्ष्म रूप है शिक्षा का पर स्थूल रूप से हम शिक्षा को किसी व्यक्ति विशेष या संस्था विशेष से बंधा पाते हैं। उनमें से विद्यालय शिक्षा का विशिष्ट कोष है।
पिछले डेढ़ साल से कोविड महामारी के कारण हमारी विद्यालयीय शिक्षा पर अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ा है। शिक्षा की गति अत्यंत धीमी हो गई है।
यद्यपि डिजिटल उपकरणों का आविष्कार इसकी निरंतरता को अवश्य बनाए हुए है। इसमें ठहराव नहीं आने पाया है किन्तु इसके कुप्रभाव से कोई अछूता नहीं है।चाहे शिक्षक हों, छात्र हों या फिर अभिभावक। कोरोना ने बच्चों को मोबाइल का आदि बना दिया। मोबाइल हाथ में आते ही बच्चे हर वक्त पढ़ाई के नाम पर जो चाहे करते रहते हैं। चैटिंग करना, गेम खेलना ,वीडियो देखना आदि।
ऑनलाइन शिक्षा का छोटे बच्चों पर और भी बुरा प्रभाव पढ़ रहा है। बढ़ते बच्चों की आँखें पूरी तरह विकसित नहीं होती हैं ।ऐसे में मोबाइल की तेज रोशनी उनकी आँखों को कमजोर कर रही है। स्वभाव में चिढ़-चिढ़ापन सभी में देखने को मिल रहा है।अभिभावकों को भी बच्चों को कार्य कराने में असुविधा हो रही है। अध्यापकों पर कार्य का दवाब बढ़ने से मानसिक तनाव होना स्वाभाविक है।
कुल मिलाकर देखा जाय तो विद्यालय में जाकर प्रत्यक्ष रूप से शिक्षा का जो लाभ मिलता है उसके सामने ऑनलाइन शिक्षा कहीं भी नहीं ठहरती। समाज में सामूहिकता और भावनात्मक लगाव ऑनलाइन शिक्षा कभी नहीं दे सकती।
विद्यालयीय शिक्षा का क्या महत्व है कोरोना ने ये तो सबको सिखा ही दिया।
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