कोरोना(लघुकथा)
मैं आराम से टीवी देख रही थी। अचानक दरवाजे पर खटखट की आवाज हुई। मैंने पूछा ,’कौन है?’ बाहर से आवाज आई, मैं कोरोना हूँ। दरवाजा खोलो। मुझे अंदर आना है।’ मुझे तो काटो खून नहीं , फ़ौरन बोली ,’ हमारे मोदी जी ने मना किया है। न घर से बाहर जाओ और न किसी घर वाले को बाहर आने दो। मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी ।’ कोरोना बोला ,’ देखो खोल दो वरना मैं ऐसे ऐसे काम करूंगा कि तुम खुद बाहर आ जाओगी। फिर मैं तुम्हारे गले लग जाऊंगा ।’
मैं डर से थरथर काँपने लगी, लेकिन दरवाजा नहीं खोला। अचानक घर के दरवाजे खिड़कियां पंखे सब चीजें जोर जोर से हिलने लगीं।’ हे भगवान! ये तो भूकम्प है। अब क्या होगा। छत गिर गई तो । फिर तो बिल्कुल नहीं बचूंगी। कोरोना हो भी गया तो शायद इलाज से सही हो जाऊं’ , मैं सोचने लगी।
टीवी की ओर आशा भरी नजरों से देखा शायद मोदी जी कोई तरकीब बता दें। हार कर घर से बाहर जाने का फैसला किया । दरवाजे तक पहुंची ही थी कि बड़े जोर से चीखने की आवाज आई,’ मम्मी बड़ी भूख लगी है। कुछ खाने को दो। कब से सो रही हो।’ ओह्ह!तो ये सपना था। मैंने माथे पर छलक आई पसीने की बूंदे पूँछी और चल दी अपनी किचन की ओर। ये कोरोना भी न………
12-04-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद