*कोरा दायरा तन मन छू लूँ*
कोरा दायरा तन मन छू लूँ
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यूँ कब से खड़े हम राहों में,
बहने दो जरा कुछ सांसों में।
पल प्यारा कहीं ना चल जाए,
झट ले लो हमें तुम बांहों में।
नीले नैन मादक दो गोले,
बसने दो चपल नम आँखों में।
गोरे गाल मय के हों प्याले,
खो जाएं खिले गुलनारो में।
पल दो पल यहीं मदहोशी में,
है मगलूब् तेरी बातों में।
कोरा दायरा तन मन छू लूँ,
हम मगरूर बहती धारों में।
मनसीरत तलब बेहोशी में,
सो जाऊं घने काले बालों में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)