कोई भी सुनता नहीं , अब जनता की बात ।
कोई भी सुनता नहीं , अब जनता की बात ।
मठाधीश इतने मगन , बिगड़ गये हालात ।
बिगड़ गए हालात , रहे कैसे खुशहाली ।
जेबें इनकी मस्त , शेष की दिखतीं खाली ।
रोज अमावस रात , फसल ये कैसी बोई।।
इनके ही त्योहार , दिखे रोता हर कोई ।।
सतीश पाण्डेय