कोई चाहे कितने भी,
कोई चाहे कितने भी,
दांव पेंच खेल ले।
आखिरी में हुकुम का इक्का,
कुदरत ही फेंकता है।।
“प्रकृति जोहार”
कोई चाहे कितने भी,
दांव पेंच खेल ले।
आखिरी में हुकुम का इक्का,
कुदरत ही फेंकता है।।
“प्रकृति जोहार”