कोई क्या करे
क्या किया करूँ जब मन उदास हो
मन जब इधर उधर भटकता हो
एक अजीब सी छटपटाहट हो
तो कोई क्या करे
ज़ेहन मैं कितने ही सवाल उठते हैं
क्या मैं ग़लत हूँ ये पूछते हैं
पर कोई समाधान ना मिले
तो कोई क्या करे
कोई तो ऐसा होगा जो मुझे बताएगा
मेरे हर सवाल का जवाब बताएगा
मुझे मेरी मंज़िल सुझाएगा तब तक कोई क्या करे ,मैं उस रह का रही हूँ जिसका कोई साथी नहीनस मॉड पर हूँ जहां से कोई रह सूझती नहीं
अब कौन सी रह पकड़ूँ समझ आता नहीं
तब तक कोई क्या करे ,फिर भी इस आशा मैं जी रही हूँ
कि कभी ना कभी कोई ऐसा मिले गा
जो की मुझे मेरी मंज़िल डटायेगा
हाथ पकड़ कर मुझे रह दिखाएगा
पर तब तक कोई क्या करे
इन्द्रामणि सभरवाल