!! कोई आप सा !!
हलाहल विष का प्याला हो
कोई उसको पीने वाला हो
रोम-रोम में देश प्रेम
रग-रग में उठती ज्वाला हो
यह देश रहेगा अज़र- अमर
कोई आप सा हिम्मत वाला हो
ख़ुश्बू की तरह जो भा जाए
बन मेघ, फिज़ा में छा जाए
नयनों में जलती दीपशिखा
हर तिमिर को हरने वाला हो
यह देश …………………….
अम्बर, इतनी ऊंचाई हो
सागर जितनी, गहराई हो
मौजे लेती अंगड़ाई उर में
जिसे तुफानों ने पाला हो
यह देश …………………..
फूलों जैसी कोमलता हो
सरिता जैसी निर्मलता हो
हिम जैसा शीतल मस्तिष्क
अरि में भय भरने वाला हो
यह देश ……………………
चालें जिसकी मतवाली हो
वाणी दुःख हरने वाली हो
अंदाज़-ए-बयां निराला हो
रण, में डट जाने वाला हो
यह देश …………………..
सिंहों जैसी निर्भीकता हो
बाज़ों जैसी, जीवटता हो
गिद्धों जैसी हो तेज़ नज़र
जो दूर की देखने वाला हो
यह देश ……………………
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ