Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Dec 2018 · 3 min read

कैसे हो संस्कारों का हस्तांतरण??

हमें खूब अच्छी तरह से याद है कि मां हर बार होली या दीपावली आने के पांच या सात दिन पहले से ही पकवान बनाने का शगुन कर लेती थीं। पांच छै दिन तक रोजाना कुछ न कुछ जरूर बनाया जाता था। गुजिया, पापड़ी, मीठे नमकीन खुरमे, अनरसे,कई तरह के नमकीन सेव, दाल के छोटे समोसे, कांजी बड़े और न जाने क्या बनाया करती थीं वह भी कनस्तर और टंकियों में भर-भर कर।
हमें भी बेसब्री से इंतजार रहता था कि कब पूजन पूर्ण हो और हम टूट पड़ें पकवानों और माल पर।
होली पर्व पर खूब होली खेलते और दीपावली पर खूब पटाखे चलाते चाचा,ताऊ,बुआ के बच्चों के साथ और सहेलियों के साथ। और एक मजे की बात यह थी कि जिस किसी भाई बहन या सहेली से अनबन या चल रही हो, बोलचाल बन्द हो वह होली के दिन दोस्ती में बदल दी जाती थी। उस प्यारे से बचपन का यह प्यारा सा रिवाज आज भी याद आता है। महसूस होता है कि काश आज भी दुनिया में वह प्यारी सी मासूमियत कहीं मिल पाती ???
आज के बदले परिवेश के लिए केवल नयी पीढ़ी को ही दोषी ठहराना कदापि उचित नहीं। आज की पीढ़ी से पूर्व वाली पीढ़ी भी
पाश्चात्य संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित रही है जिसके अनुसरण में हम अपनी पुरानी सुन्दर व सार्थक परम्पराओं से विमुख होते गए जैसे -फाग के गीत, होलिका दहन का पूजन करना, घर-आंगन में होलिका दहन, सामूहिक दीवाली पूजन, घर में गोवर्धन पूजा, रक्षाबंधन पर सभी चचेरे भाई बहनों का साथ, खुद हाथों से मिठाई पकवान बना कर खिलाना, घर की बहुओं को सास द्वारा होली पर फाग की साड़ी (डंडिया) भेंट करना, घर आने वाले जंवाइयों दामादों को नेग देना, देवरों द्वारा भाभी को होली पर मिठाई व सुहाग के सामान के साथ पान भेंट करना, ये सभी प्यारी सी स्वस्थ परंपराएं पारिवारिक रिश्तों में स्नेह, सम्मान व अपनत्व मिश्रित जुड़ाव को पैदा कर संपूर्ण कुटुम्ब को प्रगाढ़ स्नेह की मजबूत डोर में आबद्ध करती थी।
प्राचीन समय में हम भारतीयों में से अधिकांशतःकृषि पर ही आश्रित थे तथा फसलों के पकने व मौसम परिवर्तन के उल्लास के साथ हर त्योहार के माध्यम से मनुष्य मौसम के बदले मिजाज के साथ सामंजस्य बैठाते हुए अपने दैनंदिनी जीवन में सतरंगी खुशियों की प्रविष्टि करता था। होलिका दहन का भी अत्यंत गूढ़ व गहन भावार्थ था। इसका अर्थ जीवन की नकारात्मकता एवं बुराइयों को अग्नि में स्वाहा करना होता था।दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत, रक्षाबंधन स्नेह व रक्षा का पर्व और दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव अर्थात् हर पर्व एक सीख व सार्थक संदेश देता था जो परिवार को एकता के सूत्र में बद्ध करता था।
आज हम समयाभाव का राग अलाप कर इन रीति रिवाजों से कन्नी काटते नजर आते हैं। यही कारण है कि पारिवारिक विघटन, एकल परिवार व विवाह विच्छेद पग-पग पर दृष्टि गोचर हो रहा है यहां तक कि युवा वर्ग में विवाह जैसी चिरस्थाई स्थापित संस्था पर से विश्वास उठता जा रहा है। यदि हम चाहें तो अपने प्रिय पर्वों के वृहत स्वरूप को छोटा किन्तु खूबसूरत रूप देकर अपने प्रिय पर्वों को उत्साह पूर्वक मना सकते हैं और इस प्रकार हम अपनी विरासत की पुरानी पारिवारिक प्यारी सी सांस्कृतिक परंपरा रूपी धरोहरों को अपनी आगामी पीढ़ियों को किसी न किसी रूप में हस्तांतरित अवश्य कर सकेंगे। यह मेरी सोच है, हो सकता है आपकी सोच कुछ अलग हो।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

Language: Hindi
Tag: लेख
363 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2333.पूर्णिका
2333.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
वक्त की कहानी भारतीय साहित्य में एक अमर कहानी है। यह कहानी प
कार्तिक नितिन शर्मा
Today i am thinker
Today i am thinker
Ms.Ankit Halke jha
Honesty ki very crucial step
Honesty ki very crucial step
Sakshi Tripathi
#गौरवमयी_प्रसंग
#गौरवमयी_प्रसंग
*Author प्रणय प्रभात*
यदि तुमने किसी लड़की से कहीं ज्यादा अपने लक्ष्य से प्यार किय
यदि तुमने किसी लड़की से कहीं ज्यादा अपने लक्ष्य से प्यार किय
Rj Anand Prajapati
तुम मोहब्बत में
तुम मोहब्बत में
Dr fauzia Naseem shad
“गणतंत्र दिवस”
“गणतंत्र दिवस”
पंकज कुमार कर्ण
💐प्रेम कौतुक-466💐
💐प्रेम कौतुक-466💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बढ़ता उम्र घटता आयु
बढ़ता उम्र घटता आयु
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
जिंदगी में सफ़ल होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि जिंदगी टेढ़े
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
परित्यक्ता
परित्यक्ता
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
जीवनामृत
जीवनामृत
Shyam Sundar Subramanian
शुक्रिया कोरोना
शुक्रिया कोरोना
Dr. Pradeep Kumar Sharma
*नमस्तुभ्यं! नमस्तुभ्यं! रिपुदमन नमस्तुभ्यं!*
*नमस्तुभ्यं! नमस्तुभ्यं! रिपुदमन नमस्तुभ्यं!*
Poonam Matia
बेमतलब सा तू मेरा‌, और‌ मैं हर मतलब से सिर्फ तेरी
बेमतलब सा तू मेरा‌, और‌ मैं हर मतलब से सिर्फ तेरी
Minakshi
दादा की मूँछ
दादा की मूँछ
Dr Nisha nandini Bhartiya
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
कागज ए ज़िंदगी............एक सोच
Neeraj Agarwal
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
*** बिंदु और परिधि....!!! ***
VEDANTA PATEL
परख: जिस चेहरे पर मुस्कान है, सच्चा वही इंसान है!
परख: जिस चेहरे पर मुस्कान है, सच्चा वही इंसान है!
Rohit Gupta
पथ नहीं होता सरल
पथ नहीं होता सरल
surenderpal vaidya
*पीयूष जिंदल: एक सामाजिक व्यक्तित्व*
*पीयूष जिंदल: एक सामाजिक व्यक्तित्व*
Ravi Prakash
भीतर का तूफान
भीतर का तूफान
Sandeep Pande
जो दिखता है नहीं सच वो हटा परदा ज़रा देखो
जो दिखता है नहीं सच वो हटा परदा ज़रा देखो
आर.एस. 'प्रीतम'
आदमी इस दौर का हो गया अंधा …
आदमी इस दौर का हो गया अंधा …
shabina. Naaz
सुख हो या दुख बस राम को ही याद रखो,
सुख हो या दुख बस राम को ही याद रखो,
सत्य कुमार प्रेमी
" वर्ष 2023 ,बालीवुड के लिए सफ़लता की नयी इबारत लिखेगा "
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
आपदा से सहमा आदमी
आपदा से सहमा आदमी
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
SURYA PRAKASH SHARMA
इंसान कहीं का भी नहीं रहता, गर दिल बंजर हो जाए।
इंसान कहीं का भी नहीं रहता, गर दिल बंजर हो जाए।
Monika Verma
Loading...