कैसे सुनाऊँ
आंसुओं को किस तरह रोकूँ,छुपाऊँ
गीत जीवन के लिखे कैसे सुनाऊँ
भाव मन के सुप्त हो बेसुध पड़े हैं
शब्द पहने हथकड़ी बेड़ी खड़े हैं
वेदना के चित्र अब किसको दिखाऊँ
गीत जीवन के……………….
प्रीत के अनुबन्ध टूटे, खो गये हैं
छन्द के उपबन्ध पागल हो गये हैं
रस हुए नीरस, सरस कैसे बनाऊँ
गीत जीवन के……………….
भावना, सम्वेदना के रंग छूटे
कल्पनाओं के ‘असीम’ आधार टूटे
सुर की रंगोली भला कैसे सजाऊँ
गीत जीवन के……………….
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’