कैसे यक़ीन दिलाऊं कि मैं तो बस तेरा हूॅं…
कैसे यक़ीन दिलाऊं कि मैं तो बस तेरा हूॅं…
हर बार बस यही कहूॅंगा कि मैं बस, तेरा हूॅं…
कम नहीं तू किसी महफ़िल की हसीं शाम से,
पता है तुझे कि बसता हूॅं दिल में तेरे आराम से!
…. अजित कर्ण ✍️
कैसे यक़ीन दिलाऊं कि मैं तो बस तेरा हूॅं…
हर बार बस यही कहूॅंगा कि मैं बस, तेरा हूॅं…
कम नहीं तू किसी महफ़िल की हसीं शाम से,
पता है तुझे कि बसता हूॅं दिल में तेरे आराम से!
…. अजित कर्ण ✍️