12, कैसे कैसे इन्सान
अपने जीवन में…
ना जाने कितने किरदार निभाता है इंसान,
कभी- कभी…
इन्सान होकर भी, इन्सानियत नहीं निभाता है इन्सान।
दौलत कमाकर भी, सुखी नहीं रहता,
ना जाने कैसे…
सुकून की तलाश में रहता है इन्सान।
जिससे नफरत करता,उसे पलभर में छोड़ देता,
मौहब्बत में सरहदें भी पार कर जाता है इन्सान।
एक- दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में,
रिश्तों को भी ताक पर रख देता है इन्सान।
मुनाफे के संबंध निभाते- निभाते,
रिश्तों का ही सौदागर बन जाता है इन्सान।
बचपन, यौवन और वृद्धावस्था का सफ़र तय करते करते,
इंसानियत ही भूलता जाता है इन्सान।
उचित-अनुचित की झूठी पहचान करके ‘मधु’,
खुद को ही खुदा समझने लगता है इन्सान।