कैसे कहु
कैसे में कहु तुझसे ।
कुछ बाते मुझमे ही दब सी रह गयी ।।
जिक्र ना कर सका जिन बातों का ।
अब चहरे की रंगत बया कर रही ।।
पर बयां नही हुआ लफ्जो से ।
ये के सा सितम मुझपर है छा गया ।।
कैसे में कहु तुझसे ।
कुछ बाते मुझमे ही दब सी रह गयी
कैसे में कहु तुझसे ।
कुछ बाते मुझमे ही दब सी रह गयी ।।
जिक्र ना कर सका जिन बातों का ।
अब चहरे की रंगत बया कर रही ।।
पर बयां नही हुआ लफ्जो से ।
ये के सा सितम मुझपर है छा गया ।।
कैसे में कहु तुझसे ।
कुछ बाते मुझमे ही दब सी रह गयी