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4 May 2023 · 1 min read

कैद अधरों मुस्कान है

ग़ज़ल

ज़िंदगी जीना कहाँ आसान है
कैद अधरों पर हुई मुस्कान है

रो रहा घर आज अपनों के लिए
गाँव आँगन द्वार सब वीरान है

घूमते हैं जो सियासत की गली
खूब अब उनकी वहाँ पहचान है

थे कभी अनजान हम जिससे वही
बात कर दिल का हुआ मेहमान है

मोल करता आदमी का आदमी
बन गया धनवान ही भगवान है

आ गई है सभ्यता में अब कमी
लुप्त वृद्धों का हुआ सम्मान है

सिद्ध करता जो ‘सुधा’ है तारिका
ज्ञान का भंडार ये विज्ञान है

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी ,©®

Language: Hindi
444 Views

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