केवल औपचारिक नहीं होना चाहिए किसी को बधाई अथवा शुभकामनाएँ देना
लेख :
केवल औपचारिक नहीं होना चाहिए किसी को बधाई अथवा शुभकामनाएँ देना
कहते हैं दुख बाँटने से कम होते हैं, तो खुशियाँ कई गुना बढ़ जाती हैं. शायद इसी से हम अपने चाहने वालों के दुख में शामिल होकर उन्हें सांत्वना देने की औपचारिकता निभाना नहीं भूलते और हमें भूलना भी नहीं चाहिए. यदि हमें किसी के दुख का देर से पता चले, तो देर से ही सही, हमें उसके प्रति सांत्वना ज़रूर व्यक्त करनी चाहिए. किंतु इसके दूसरी तरफ यदि हम किसी पर्व विशेष अथवा किसी व्यक्ति के जीवन में आए किसी खुशी के अवसर पर उसे सही समय पर बधाई अथवा शुभकामना नहीं दे पाए हैं या अपनी ओर से संदेश नहीं भिजवा पाए हैं, तो समय निकालने के बाद उसे बधाई देना अथवा शुभकामना संदेश भिजवाना एक औपचारिकता ही कहा जाएगा और तब तो यह बिल्कुल ही औपचारिक हो जाएगा, जब आप बिना पूछे ही सामने वाले को समय पर बधाई एवम् शुभकामनाएँ न दे सकने का कोई कारण भी बता देंगे. क्योंकि आज के युग में विकसित संचार तकनीक ने इस तरह के सारे बहाने समाप्त कर दिए हैं.
ध्यान देने वाला तथ्य है कि शुभकामना संदेश कोई मिठाई का डिब्बा नहीं कि किसी के लाए-ले जाए बगैर कहीं आ-जा ही न सके, किंतु फिर भी कुछ लोग हैं कि दीपावली या अन्य किसी भी पर्व अथवा किसी के जीवन में खुशी के अवसर की शुभकामनाएँ देर से देते हुए कोई न कोई बहाना भी अपनी तरफ से परोस देते हैं, मतलब कि बिना पूछे ही और सामने वाले की तरफ से बिना कोई शिकायत किए ही अपने शुभकामना संदेश अथवा बधाई देने से पहले या बाद में अपनी तरफ से कोई बहाना भी प्रेषित कर देते हैं, कोई बहाना ढंग का हो तो कोई बात नहीं, पर कुछ को तो बहाना बनाना भी ठीक से नहीं आता और जिस मोबाईल का उपयोग वो दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ अवसर के दिन सामने वाले को शुभकामना संदेश देने के लिए नहीं कर सके होते हैं, उसी से बात करते हुए, कह देते हैं कि उस दिन वो कहीं बाहर थे, आज लौटे हैं तो बधाई एवम् शुभकामनाएँ दे रहे हैं…., खैर शुक्रिया ऐसे लोगों का भी, क्योंकि शुभकामनाएँ तो शुभकामनाएँ होती हैं, भले ही देर से ही क्यों न दी गई हों और चाहे किसी कारण दी भी न गई हों, किंतु मन से किसी का शुभ चाहने की कामना की तो गई हो, लेकिन सवाल इस बात का है कि खुद की ग़लती का ठीकरा आज के युग में भी यदि कोई स्थान विशेष की दूरी के सिर पर फोड़ता है, तो उसकी बात पर कितना और कहाँ तक विश्वास किया जाए? उदाहरण के तौर पर यदि हम होली-दीपावली अथवा किसी राष्ट्रीय पर्व पर किसी व्यक्ति के ऐसे व्यवहार को लें, तो क्या ऐसे व्यक्ति ने उस दिन किसी भी व्यक्ति को अपनी ओर से शुभकामना संदेश किसी भी संचार उपकरण अथवा सोशल मीडिया से नहीं भेजा होगा? यदि जिन्हें भेजा है, वो उसके बहुत करीबी रहे हैं, तो उनके मुकाबले देर से किसी को अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित करके किसी अन्य से नज़दीकियाँ बढ़ाने से क्या फ़ायदा? बहाना हो, तो कोई ढंग का तो हो, अन्यथा यह तो एक औपचारिकता ही नहीं, बल्कि विशुद्ध भारतीय परंपरा का मज़ाक उड़ाना और सामने वाले को बेवकूफ़ बनाने का एक प्रयास ही कहा जाएगा … और यह भी नहीं है कि जिसे आप बेवकूफ़ बनाने चलें, वो आपकी चालाकी को न समझे, अत: यह भी स्पष्ट है कि किसी के इस तरह के व्यवहार पर विचार सब करते हैं, यह अलग बात है कि कोई कह देता है, तो कोई सह लेता है. इसीलिए एक विचारणीय मुद्दा है यह भी, अर्थात देर से शुभकामनाएँ देना भी. वस्तुत: हमें विचार करना चाहिए इस बात पर कि यदि हम किसी सन्दर्भ में औपचारिकता भी निभा रहे हैं, तो उसका भी एक समय और सही तरीका होता है, यह नहीं कि जब जो जी में आया कह दिया और फिर साथ ही यूँ हँस भी दिए कि सामने वाले को पता ही न चले कि हम उस पर हँस रहे हैं कि खुद पर या फिर अपने द्वारा पूरी की गई औपचारिकता पर…सोचो कभी ऐसा कोई आपके साथ करे, तो क्या हो?
– आनंद प्रकाश आर्टिस्ट,
अध्यक्ष, आनंद कला मंच एवम् शोध संस्थान,
सर्वेश सदन, आनंद मार्ग, कोन्ट रोड, भिवानी-127021(हरियाणा)