केजरू
अन्ना की अंगुली पकड़ चला एक किरदार।
गला फाड़ कर के कहे सबमें भ्रष्टाचार।।
आंदोलन की पीठ पर चढ़ बैठा बलवान।
अनशन, भाषण , वचन से बनता रहा महान।।
लोकपाल बिल चाहिए थी आंदोलन की मांग।
अंदर खाने रच रहा, था वह अपना ही स्वांग।।
धीरे धीरे बन गया जन आंदोलन का लंबरदार।
दिया दुलत्ती अन्ना जी को बना लिया सरकार।।
बचे खुचे अन्ना जैसे थे खुद लिए रास्ता नाप।
प्रशांत, योगेंद्र, विश्वास को जोर की मारी लात।।
अब पार्टी में केवल रह गए चोर गरीब दलाल।
सबका मालिक बन गया, बस दाना पानी डाल।।
स्वयं सिद्ध करता रहा खुद को कट्टर ईमानदार।
बारह वर्षों से चला रहा वह चुनी हुई सरकार।।
रहा दिल्ली शहर में घुमता पहने शेर की खाल।
पुलिस ने खींची खाल तो निकला केजरीवाल।।
जनता को दे कट मनी खाए जमकर माल।
“संजय” भ्रष्टाचार के खेल में जेल केजरीवाल।।
जय हिंद