केक की मिठास
कांता बाई और केक की मिठास___
लॉक डाउन के बाद कांताबाई का आज काम पर जाना हुआ। अंदर ही अंदर डर समाया हुआ था पता नहीं काम पर रखेंगे या नहीं। लेकिन कांताबाई को देखकर कोठी वाली मेमसाब की खुशी देखते ही बन रही थी। आज उन्होंने खाने स्पेशल केक भी बनाया, बच्चे बहुत खुश हो गए। रोजाना बच्चों की फरमाइश पूरी करने में मेमसाब को झुंझलाहट आने लगती थी, लेकिन आज वो कांताबाई के लिए भी चाय बना लाई। घर जाते हुए मेमसाब ने बच्चों के लिए भी केक रख दिया। आज कांताबाई बहुत खुशी-खुशी घर आई और आते ही बाहर खेल रहे अपने बेटे और बेटी को बुलाया, और बच्चों को हाथ धोने की कह कर, अपना थैली खोलने बैठ गई। दोनों बच्चे भूख से व्याकुल, कुछ खाने की आस में अंदर आए। मां ने थैली में से एक पैकेट निकाला उसमें केक था। अपने बेटे को प्यार से दुलराते हुए मां ने उस डिब्बे को खोलकर बेटे को दिया और बहुत लाड़ से कहा, मैम साहब ने घर में बनाया, स्पेशल। तुझे बहुत पसंद है ना चल खा ले, बेटी ने यह देखकर बाल सुलभ ललचाते हुए कहा, मां मुझे भी तो दो ना केक! कांताबाई ने झिड़क कर चुप करा दिया, तू यह सब खाकर बिगड़ जाएगी। छोरियों का चटोरापन सही नांय, तोहे ससुराल जानौ है, वहां रोटी के संग चटनी, सब्जी मिल जाए तो तेरे भाग खुल जांगे। तेरे काजे खानौ लाई हूं खाय लै, मां ने डांटते हुए थैली में से खाना निकाल कर, थाली में परोस कर बेटी को दे दिया। बेटी चुपचाप बैठकर बेमन से खाना खाने लगी, वह मन ही मन रो रही थी, मां हमेशा भाई को ज्यादा महत्व क्यों देती है। बेटे से यह सब सहन नहीं हुआ वह खड़ा हुआ और अपनी थाली में से आधा केक निकाल कर अपनी बहन की थाली में रख दिया। केक देखकर बहन का चेहरा खिल उठा और मां भी चकित रह गई। केक खा तो बेटी रही थी लेकिन जीवन में पहली बार उसे तसल्ली हो रही थी बहन भाई के प्यार को देखकर। केक की मिठास का स्वाद जीवन में मधुरता घोल रहा था। कांताबाई सोच रही थी, लॉक डाउन के बाद अभावों के बीच संबंध गहरे हो रहे हैं।
__ मनु वाशिष्ठ (मंजू वाशिष्ठ)