***कृष्ण भक्ति***
“श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी ..हे नाथ नारायण वासुदेवाय’
*”सच्चिदानंद रूपाय विश्वोतपया दिहेतवे
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नमः “*
*कृष्णम वन्दे जगत गुरु *
कृष्ण जी बाल स्वरूप में पीपल के पत्ते पर लेटे हुए हैं और उनका शरीर में अनंत ब्रम्हांड समाया हुआ है वे अपने पैर के अंगूठे को मुँह में ले जाकर चूस रहे हैं ऐसा ही चिंतन हम दिमाग़ में करते रहते हैं ।
कृष्ण का अर्थ है ” बार बार आकर्षित करना और ना का अर्थ है ” परमानंद अर्थात पूर्ण रूप से मोक्ष की प्राप्ति” इस प्रकार कृष्ण का अर्थ जो हमें परमानंद या पूर्ण रूप से मोक्ष की ओर ले जाना ही “कृष्ण” है ..!!!
उन कृष्ण जी को हम शाश्वत प्रणाम करते हैं जो हमें अनन्य चैतन्य भक्ति की ओर ले जाकर जीवन सार्थक करता है ।कृष्ण भक्ति में डूब जाने से जीवन पूर्णतः कृष्णमय हो जाता है उनके दिव्य शक्ति के दर्शन होने लगते हैं उनसे साक्षात्कार होने लगता है और सच्चिदानंद परम आनंद की अनुभूति होती है।
जब हम कृष्ण भक्ति में डूबने लगते हैं तो उनकी नित्य छबि आँखों में बस जाती है यही मनमोहनी स्वरूप के दर्शनों से सारे दुःख ,कष्ट ,क्लेश दूर होने लगते हैं।
हे कृष्ण ..! आपकी छबि अदभुत कलाकार के रूप में कांति स्वरूपों में अंधकार रूपी कुँए से बाहर निकलने में सहायक होते हैं जो उजाले की ओर गीता के उपदेश में ज्ञान मार्ग पर चलने को प्रेरित करती है ।
कृष्ण सुपर पावर स्टार कलाकार है जो हमारे तुच्छ भेंट को स्वीकार कर शीघ्र प्रसन्न हो जाता है और हमें सुखद जीवन जीने की कला सीख दे जाता है।
हे कृष्ण ! सृष्टि रचना की उत्पत्ति का कारण तुम्हीं हो दैहिक ,दैविक, भौतिक तीनों तापों का विनाश करने वाले भी तुम्हीं हो हे प्रभु ! हे कॄष्ण ! आपको कोटि कोटि नमन करते हैं।
हे गिरधर गोपाल ! हे मुरलीधर ! हे रास रचैया बांके बिहारी जी आपकी लीला का मात्र प्रतिबिम्ब हो !
अनंत सागर की गहराई हो ! ऐश्वर्य ,अंनत बल, अनंत यश ,श्रीधर स्वामी हो लेकिन इसके साथ साथ में आप अंनत ज्ञानी व वैरागी के दाता भी हो !
हे योगिराज कृष्ण ! आपके द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश भी हमें आलोकित करता है जो हम सभी के जीवन का मार्ग प्रदर्शक है जीवन की साधक संजीवनी बूटी विद्या है जो बहुमूल्य खजाना से कम नही है लेकिन हम मर्त्य प्राणी मात्र इस अपार शक्ति की सामर्थ्य को भूलकर मायामोह के जंजाल में डूबे रहते हैं और आपका वास्तविक स्वरूप को देख नही पाते हैं इसलिए दुःख ,कष्टो को झेलते हुए जीवन व्यतीत करते हैं जो आपके स्वरूप को भक्ति को जान ले उसे अपने जीवन में कोई किसी तरह का आभाव नही रहेगा भान नही होगा।
हे अंनत कोटि ब्रम्हांड प्रभु श्री कृष्ण जी को जन्माष्टमी के पावन पर्व पर योद्धा कृष्ण योगिराज माधव , चित्तचोर माखनचोर ,नँदलाल वासुदेव जी जगत के रचियता का स्वरूप की शपथ लेते हैं कि हम सदैव आपके चरणों का भक्त बनकर चरण कमलों में शीश झुकाकर वंदन करते रहेंगे और धर्म के प्रति निष्ठा रखते हुए कर्म बन्धन में बंधकर धर्म के प्रति जागरूक रहकर सत्मार्ग पर अनुगमन करते हुए चलते ही रहेंगे ।
राधैय राधैय जय श्री कृष्णा
*** शशिकला व्यास ***
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