कृष्ण थक गए हैं
सत्ता की गांधारी ने
जब-जब खोली है
अपनी आँखों पर बंधी पट्टी
तब-तब
हो गए हैं कई दुर्योधन
वज्रदेह
किन्तु अधोवस्त्रों से ढंका
उनका दुष्कर्म
बन गया उन्हीं के
विनाश का कारण
राजनीति का शकुनि
फेंकता रहा कपट पांसे
चलता रहा
टेढ़ी चालें
और बोता रहा अपनों ही के
विनाश के बीज
लोभ के धृतराष्ट्र ने
कर दिया
निर्दोष नस्लों को
कुटिलता के शकुनि के हवाले
तब
कहाँ तक रक्षा करता
नैतिकेता का कृष्ण
कहाँ-कहाँ घूमता
उसके सुदर्शन चक्र का प्रकाश
जब अहंकार अंधा और लोभी हो
सत्ता जान-बूझ कर
अंधेरा ओढ़ ले
न्याय की तुला
दे-दे दो-दो आँखों वाले
कुटिल शकुनि के हाथों में
अब तो कृष्ण ने
थक कर
सुदर्शन चक्र
रख दिया है एक ओर