कृष्ण कन्हैया
कृष्ण कन्हैया (वीर रस)
बहुत लुभाता छलिया मोहन,जान सको तो इसको जान।
हर क्षण दिल में बसा रहेगा,इससे करना नित पहचान।
साथ निभाना इसे पता है,रसिक मिजाजी है भरपूर।
तड़पाता वह कभी नहीं है,अंतस में है कहीं न दूर।
राधा को यह सदा चाहता,वही सिर्फ है उसकी राह।
राजा है वह प्रीति रंग का,पीत वसन ही इसकी चाह।
खो जाता आजीवन इसमें,बिना किये कोई परवाह।
अनायास यह प्रेमिल उर्मिल,प्रेम भाव का शाहंशाह।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।