कृष्ण अवतार
देखो कौन जगत में आया।।
जिसने माखन चुराकर खाया।
यशुमति के लाड दुलारे हैं।
वसुदेव की आंख के तारे हैं।।
देवकी के हैं कृष्ण कन्हैया।
तेरे दो दो पिता और मैया।।
कान्हा कैसी रची है माया।,,,,,,
तुम तीन लोक के स्वामी हो।
फिर माखन क्यों चुराते हो।।
नहीं तुझसा कोई अवतारी।
सुख दुख का मोहन साथी।।
आनंद ह्रदय में छाया।।,,,,,,,,
कारागृह के ताले टूट गए।
नक्षत्र रोहिणी उदित हुए।।
भादों मास अष्टमी आई।
घनघोर घटा थी छाई।।
सब विधि की रची थी माया।,,,,,
तुम कर्मयोगी कहलाते हो।
यमुना तट पर रास रचाते हो।।
अर्जुन के साथी बनकर तुम।
महाभारत युद्ध कराते तुम।।
जीवन का मर्म सिखाया।,,,,
बंसी धर गोवर्धन धारी।
कहां हुआ है माखन चोरी।।
बंसी की धुन पर नाच नचाया।,,,,
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उमेश मेहरा (गाडरवारा एम पी)
9479611151