कृपाण घनाक्षरी (करवा चौथ )
करवा चौथ
कृपाण घनाक्षरी
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छेद हो भले बारीक, पत्नी को जाय दीख,
गृहस्थी की यही लीक, छिपे नहीं दंदफंद।
मेरे दिल बसे आप,यहाँ सब कुछ माफ,
चाहे पुण्य चाहे पाप,जिंदगी का अनुबंध।
छलनी के छेद छेद, नजरों से भेद भेद,
कहाँ काला या सफेद, चाँद देखूँ मंद मंद ।
आयु होवे पिय लंब,व्रत का है अवलंब,
सुख छंद जगदंब,सदा बरसे आनंद।
मनहरण घनाक्षरी
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सब कुछ गलत नियति निर्णय किये,
नियम निरन्तर निभाये हैं सही सही।
काल छलिया ने छला, करवा का घोंट गला,
चाँद भी लगे न भला,लू शरद में बही ।
अंग अंग की उमंग,खोई बने हैं अपंग,
देखते ही देखते हुआ है दही का मही।
चाँदनी की रात रह रहके रुला रही है,
छलनी बची है छलनी वाली नहीं रही ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
1/11/23