कृति-समीक्षा – ‘स्पंदन’
वर्तमान सामाजिक परिवेश को साकार करती कृति – ‘स्पंदन’
रचनाकार : अशोक विश्नोई
समीक्षक : राजीव ‘प्रखर’
सामाजिक सरोकारों एवं समस्याओं से जुड़ी कृतियाँ सदैव से ही साहित्य का महत्वपूर्ण अंग रही हैं। वरिष्ठ रचनाकार श्री अशोक विश्नोई की उत्कृष्ट लेखनी से निकली ‘स्पंदन’ ऐसी ही उल्लेखनीय कृतियों में से एक है। जीवन के विभिन्न आयामों को सामने रखती, कुल १२४ सुंदर गद्य-रचनाओं से सजी इस कृति में रचनाकार ने, अपनी सशक्त लेखनी का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है। गद्य-कृति के प्रारम्भ में कृति रचियता, श्री अशोक विश्नोई के उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समर्थन करते हुए, डॉ० प्रेमवती उपाध्याय, डॉ० महेश दिवाकर, श्री शिशुपाल ‘मधुकर’ एवं श्री विवेक ‘निर्मल’ जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के सुंदर व सारगर्भित उद्बोधन मिलते हैं। तत्पश्चात्, सुंदर गद्य-रचनाओं का क्रम आरंभ होता है। वैसे तो कृति की समस्त रचनाएं समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का साकार चित्र प्रस्तुत करती है परन्तु, कुछ रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उदाहरण के लिये, पृष्ठ ३१ पर उपलब्ध रचना, “लाओ कलम और काग़ज़, पर लिखो…….”, समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण को पूरी तरह सामने रख रही है वहीं पृष्ठ ३३ पर उपलब्ध रचना के माध्यम से, रचनाकार कलुषित राजनीति पर कड़ा प्रहार करता है। रचना की अंतिम पंक्तियाँ देखिये – “…….श्री नेताजी की मृत्यु का समाचार ग़लत प्रकाशित हो गया था, वह अभी ज़िन्दा हैं इसका हमें खेद है।” पृष्ठ ४५ पर राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित रचना की पंक्तियाँ – “मैंने, प्रत्येक भाषा की पुस्तक को पढ़ा महत्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित किया……”, सहज रूप से राष्ट्रभाषा की महिमा-गरिमा को व्यक्त कर देती है। कुल १२४ बड़ी एवं छोटी गद्य-कविताओं से सजी यह कृति अंततः, पृष्ठ १२३ पर पूर्णता को प्राप्त होती है। हार-जीत के द्वंद्व को दर्शाती इस अन्तिम रचना की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखें – “मैं हारा नहीं हूँ क्यों हारूँ, हारना भी नहीं चाहता….”, अंत में रचनाकार का विस्तृत साहित्यिक-परिचय उपलब्ध है। यद्यपि रचनाओं पर शीर्षकों का न होना अखरता है परन्तु, कृति निश्चित रूप से पठन पाठन व चिंतन-मनन योग्य है।
कृति का नाम – स्पंदन, रचनाकार – अशोक विश्नोई (मो० ९४११८०९२२२, मुरादाबाद-उ० प्र०) प्रकाशक – विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली, प्रकाशन वर्ष २०१८, कुल पृष्ठ १२८, मूल्य रु० १५०/-