कृति समीक्षा – ‘वीरों का वंदन’
चन्दौसी (उ० प्र०) में दिनांक 14/02/2020 (शुक्रवार) को डॉ० रीता सिंह जी के काव्य-संकलन, ‘वीरों का वंदन’ के विमोचन के अवसर पर, मेरे द्वारा पढ़ा गया समीक्षात्मक आलेख –
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राष्ट्रप्रेम की अलख जगाती उल्लेखनीय कृति
‘वीरों का वंदन’
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एक रचनाकार के अन्तस में उमड़ते भावों का कृतियों के रूप में समाज के सम्मुख आना, सदैव से ही साहित्य-जगत की परम्परा रही है। ऐसी अनगिनत कृतियों ने समाज को एक सार्थक संदेश देते हुए साहित्य-जगत में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज करायी है। डॉ० रीता सिंह जी की उत्कृष्ट लेखनी से निकला काव्य-संग्रह, ‘वीरों का वंदन’ एक ऐसी ही कृति कही जा सकती है। बहुत अधिक समय नहीं बीता है, जब मानवता के दुश्मनों ने पुलवामा में अपनी अमानवीयता का उदाहरण प्रस्तुत किया था परन्तु, नमन भारत माँ के उन लाडलों को, जिन्होंने इन तत्वों को मुँहतोड़ उत्तर देकर इनके हौसले पस्त कर दिये। यद्यपि, इस घटना में अनेक वीरों को अपने प्राणों का बलिदान करना पड़ा परन्तु, उनका शौर्य एवं जीवटता देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गयी। डॉ० रीता सिंह का काव्य-संग्रह ‘वीरो का वंदन’ उन्हीं सपूतों को श्रद्धांजलि के रूप में हमारे सम्मुख है।
कुल तीस ओजस्वी रचनाओं से सुसज्जित इस श्रद्धांजलि-माला का प्रत्येक मनका, वीरों के शौर्य को नमन करता हुआ राष्ट्रप्रेम की अलख जगाता चलता है। संकलन की प्रथम रचना ‘जय भारत जय भारती’ शीर्षक से हमारे सम्मुख आती है। माँ भारती को नमन करती यह रचना जो वास्तव में एक सुंदर गीत है, सहज ही मातृभूमि के प्रति उमड़ रहे भावों को सजीव अभिव्यक्ति प्रदान कर रही है। भावुक कर देने वाली इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें –
“महा सिंधु है चरण पखारे
घाटी इसका रूप सँवारे
मुखमण्डल अनुपम है इसका,
काली माटी नज़र उतारे।”
सशक्त प्रतीकों से सजी यह रचना न केवल उत्कृष्ट काव्य-सौन्दर्य का उदाहरण है अपितु, पाठक को देशप्रेम से ओतप्रोत होकर गुनगुनाने पर भी बाध्य कर देती है।
इसी क्रम में पृष्ठ 13 पर ‘वीरों का वंदन’ शीर्षक रचना उपलब्ध है जो उन कठिन परिस्थितियों का चित्रण करती है जिनके मध्य रहकर हमारे शूरवीर देश की सीमाओं को सुरक्षित रखते हैं। रचना की कुछ पंक्तियाँ –
“धूप में ये खड़े
शीत से भी लड़े
करते कहाँ गमन
रहते सदा मगन
इनको करें नमन।”
इसी क्रम में, ‘कलम तुम गाओ उनके गान’, शीर्षक रचना पृष्ठ-15 पर मिलती है जो कलम के सिपाहियों को सीमा के योद्धाओं का स्मरण कराती हुई, उनसे आह्वान करती है कि अगर वे सीमा के प्रहरी हैं तो आप कलमकार भीतर के रक्षक। कलम के योद्धाओं से वार्तालाप करती इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें –
“कलम तुम गाओ उनके गान
तिरंगे की जो रखते आन
मातृभूमि पर बिन आहट ही
हुए न्योछावर जिनके प्रान।
कलम तुम गाओ उनके गान।”
इसी क्रम में, आतंक का नग्न एवं वीभत्स नृत्य करने वाले शत्रुओं को ललकारने एवं व्यवस्था से कड़े प्रश्न करने से भी कवयित्री संकोच नहीं करती। पृष्ठ-16 पर उपलब्ध रचना “आज तिरंगा भी रोया है”, इसी तथ्य का समर्थन कर रही है। रचना की कुछ पंक्तियाँ –
“देख जवानों की कुर्बानी
आज तिरंगा भी रोया है
सुरक्षा बल का लहू देश ने
दहशत के हाथों खोया है।
भर विस्फ़ोटक घूम रहे क्यों
सड़कों पर गद्दार यहाँ
घाटी पूछ रही शासन से
हैं कैसे ये हालात यहाँ।”
इसी कड़ी में पृष्ठ-19 पर एक अन्य उत्कृष्ट रचना, “सीमा से आयी पाती थी” पाठकों के सम्मुख आती है। इस रचना की विशेषता यह है कि यह राष्ट्र प्रेम एवं प्राकृतिक सौन्दर्य का सुन्दर मिश्रण लिये अन्तस को स्पर्श कर जाती है। रचना की कुछ पंक्तियाँ –
“पीत चुनरिया लहराती थी
हवा बसन्ती इतराती थी
धरती यौवन पर है अपने
सजी संवरकर इठलाती थी
सीमा से आयी पाती थी।”
इसी श्रृंखला में – “बसन्त तुमको दया न आयी”, “पूछ रही घाटी की माटी”, “तम की बीती रजनी काली”, “आज़ादी का दिन आया” आदि ओजस्वी एवं हृदयस्पर्शी रचनाएं, कवयित्री डॉ० रीता सिंह द्वारा किये गये इस साहित्यक अनुष्ठान की उत्कृष्टता को प्रमाणित करती हैं।
राष्ट्रप्रेम की अलग जगाती यह ओजस्वी रचना-यात्रा, पृष्ठ 39 पर उपलब्ध रचना, “जय हिन्द!” पर विश्राम लेती है। इस गीत की पंक्तियाँ सहज ही पाठक को इसे गुनगुनाने पर बाध्य कर रही हैं, पंक्तियाँ देखें –
“सब नारों में मानो अरविन्द
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!
खिली पंखुरी जन सरवर से
जय हिन्द! जय हिन्द! जय हिन्द!”
कृति की एक अन्य विशेषता यह भी है कि इसमें पृष्ठ 40 से 49 तक, पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए वीर जवानों की सूची उनके पते सहित दी गयी है जिस कारण यह कृति स्वाभाविक रूप से और भी अधिक महत्वपूर्ण बन गयी है।
यद्यपि, व्याकरण एवं छन्द-विधान के समर्थक रचनाकार बन्धु यह कह सकते हैं कि, कहीं-कहीं कवयित्री की उत्कृष्ट लेखनी भी छंद, मात्राओं इत्यादि की दृष्टि से डगमगाती सी प्रतीत हुई है परन्तु, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि, कृति की सभी रचनाओं का भाव-पक्ष इतना प्रबल एवं उच्च स्तर का है कि वह इस असन्तुलन को भी पछाड़ते हुए, राष्ट्रप्रेम की अलग जगाने में सफल रही है।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि, डॉ० रीता सिंह जी की उत्कृष्ट लेखनी एवं साहित्यपीडिया जैसे उत्तम प्रकाशन संस्थान से सुन्दर स्वरूप में तैयार होकर, एक ऐसी कृति समाज तक पहुँच रही है, जो देश के लिये बलि हो जाने वाले वीरों का स्मरण कराते हुए, पाठकगणों को राष्ट्र के प्रति समर्पित रहने को प्रेरित करेगी। इस पावन एवं पुनीत अभियान के लिये, कवयित्री एवं प्रकाशन संस्थान दोनों को हार्दिक बधाई एवं साधुवाद।
माँ शारदे डॉ० रीता सिंह जी की लेखनी को निरंतर गतिमान रखते हुए, नयी ऊँचाईयाँ प्रदान करें, इसी कामना के साथ –
– राजीव ‘प्रखर’
(मुरादाबाद)
8941912642
स्थान –
पंजाबी धर्मशाला, चन्दौसी।
दिनांक –
14/02/ 2020