कृतघ्न
माता ! उसने मेरे भाई, लाल तुम्हारे , मार दिए हैं।
लुकाछिपी कर हम पर उसने, बारम्बार प्रहार किए हैं।
वो दुश्मन है माता फिर भी, उससे नातेदारी क्यों है ?
प्राण सुतों के लगे दाँव पर, फिर इतनी लाचारी क्यों है?
उसको तूने गाँव हमारे, रोजगार की सहमति दी है।
सपरिवार जीवित रहने की, माँ तूने ही अनुमति दी है।
भूल गया वह तेरी हाँ पर, ही उसकी रोजी -रोटी है ।
इस कृतघ्न को क्षमा न करना, इसकी तो नीयत खोटी है।
तुमने तो ममता बरसाई, लेकिन उसने घात किया है।
कृतज्ञता की आशाओं पर, सदा तुषारापात किया है।
हमसे अपने भ्राताओं की, सहन न अब होतीं हत्याएं।
हमको भी आदेश करो माँ, हम भी बदला लेने जाएं।
हमने दूध पिया है तेरा, हमको कर्ज चुका लेने दो।
तेरे चरणों में घाती का, मस्तक कटा चढ़ा लेने दो।
पर पहले व्यापार बन्द कर, पेट न उसका पलने देंगे।
बोटी देकर रोजी- रोटी ! नहीं दुष्ट की चलने देंगे।
संजय नारायण