कू कू करती कोयल
कू कू करती कोयल
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डाल पर हरी हरी पत्तियों के बीच
कू कू करती कोयल
नव पल्लव के
सौंदर्य में स्वयं को
समाहित कर
जब सुरीली आवाज में
गाती है गीत जीवन के
कू कू करती कोयल।।
मानो वसन्त के स्वागत में
स्वागत गीत गा रही हो।
जीवन यही तो है ?
मधुमय, संगीत की
लहरियों में खो जाना।
जहाॅ निश्छल प्रेम के
अंकुर फूटें
नये रसों से सराबोर
नवोल्लास के मधुर तरंगों
से सिंचित बागों की
अप्रतिम छटा की
राह निहारते खगों
को अभिरंजित
क्रिड़ा के आंगन में
नई छलांग लगाने के लिए??
शायद स्वयं के दंभ को
मिटाकर
समष्टि को आनंद के सागर में
गोते लगाने का
सुनहला अवसर
देती है कोयल।
डाल पर हरी हरी पत्तियों
के बीच
कू कू करती कोयल !!
**© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
६अप्रैल २०२४,