कुर्सी रज
सहसा भारी हो गये ,नेता जी बीमार ।
सो डिर्गी से भी अधिक ,उनको चढ़ा बुखार ।
उनको चढा़ बुखार ,शहर के सर्जन सारे ।
दे नहिं सके रिलीव ,परेशांं हो घरवारे ।
कुर्सी रज मिलाय नीर ,, में कियो ना अरसा ।
स्नेही ,दो घूँट देत ,ज्वर भागा सहसा ।।
सहसा भारी हो गये ,नेता जी बीमार ।
सो डिर्गी से भी अधिक ,उनको चढ़ा बुखार ।
उनको चढा़ बुखार ,शहर के सर्जन सारे ।
दे नहिं सके रिलीव ,परेशांं हो घरवारे ।
कुर्सी रज मिलाय नीर ,, में कियो ना अरसा ।
स्नेही ,दो घूँट देत ,ज्वर भागा सहसा ।।