कुर्सी ना बची
जबले हमार ग़ज़ल रही
तहरा नींद में खलल रही…
(१)
ये झोपड़ी के राख पर
कबले खड़ा ऊ महल रही…
(२)
जबले तनको कीचड़ बा
तबले झील में कमल रही…
(३)
भ्रष्ट व्यवस्था से केतना
निराश अगिला नसल रही…
(४)
जनता पर लाठी चलवाके
तहार कुर्सी का बचल रही…
(५)
आवत-जात रही सरकार
बाकिर संविधान बनल रही…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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