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4 Feb 2022 · 1 min read

कुर्सी के कीड़े

..….. कीड़े कुर्सी के….
=================
कुर्सी की चाहत में नेता, डोल रहें हैं गली गली
एक दूजे की पोल खोलते,बोल रहे हैं गली गली

कसमें वादे ऊंचे ऊंचे बस कुछ दिन की बात है
जीत गए तो रस्ता भूलें,ये इनकी औकात है
हिंदू मुस्लिम बोते डोले, ये तो ज़ालिम गली गली
एक दूजे की पोल खोलते……….

पांव पकड़ते नहीं अकडते,मीठी बात बनाते हैं
इनसे अच्छा कोई नहीं है, ज़ालिम ये दिखलाते हैं
गाली भी जनता की इनको, देखो लगती भली भली
एक दूजे की पोल खोलते……..…

सपने ऊंचे देखकर अपने, हमको भी उलझाते है
जीत बाद उलझी गुत्थी को,कब नेता सुलझाते हैं
पब्बा और कहीं लिफाफे,ये बटवाते गली गली
एक दूजे की पोल खोलते…………

ऊंच नीच का भेद मिटाते,खाते खाना नीच गली
गले लगाते पास बिठाते, गरीब ढूंढते गली गली
देखभाल के वोट डालना,ये आंधी जो चलीं चली
एक दूजे की पोल खोलते………….

गिरगिट के ये बाप बन गये,रंग ये बदलें घड़ी घड़ी
बस चाहत कुर्सी की इनको,देश धर्म की कहां पड़ी
“सागर” करना सही फैसला,सुधर जाए जो गली गली
एक दूजे की पोल खोलते,बोल रहे हैं गली गली।
कुर्सी की चाहत में नेता, डोल रहें हैं गली गली।।
=============
जनकवि/बेखौफ शायर
डॉ.नरेश “सागर”
सागर कालोनी, हापुड़
9149087291

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 2 Comments · 616 Views

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