कुपुत्र
चाहिए नहीं कुछ भी उसको, वह तो मां है।
मां के लिए जिया हो, अब वह पुत्र कहां है।।
क्या भ्रूण नहीं सिंचित होता, अब है मां के रक्त से।
वह फटेहाल भूखी क्यों है, क्या हारी वो स्वयं वक्त से।।
वो हार जाय तुम जीत सको, क्या संभव हो सकता है।
क्या कभी ये किंचित संभव है, सूरज पश्चिम उग सकता है।।
कितने पथ भ्रष्ट हुए हो तुम, खुद सोचो खुद से प्रश्न करो।
यदि “मां” ही दर दर भटक रही, तो जीना क्या तुम डूब मरो।।
सभी माताओं को समर्पित