कुदरत की तासीर
धँसती है धरती कहीं, कहीं बाढ की पीर !
समझेगा कब आदमी, कुदरत की तासीर! !
होता कितना बाढ़ से,………. बारिश से नुकसान !
फिर भी किया नआजतक , इसका उचित निदान !!
कहीं फटे हैं बदलियां, कहीं आ रही बाढ !
बढे मुसीबत देश की,..आए जब आषाढ !!
दोषी इसका कौन है,सोचो करो विचार !
क्यों आती है आपदा,बारिश मे हर बार !!
रमेश शर्मा.