कुण्डल छंद (राम यश )
कुण्डल छंद
12/10=22 अंत 2 गुरू
गरजत ललकार मार,वानर दल भारी ।
निशचर गण देख दंग,जंगी तैयारी।
राम लखन धनुष बान,वीर वेष शोहें।
बरसत नभ सुमन खास,देव बाट जोहें ।
जय जय श्रीरामबोल,जातुधान मारें ।
चकरी से गगन घुमा,धरा पटक डारें ।
रघुपति जय रामचंद्र, जय कौशल वासी ।
करतल ले धनुष बान,निशिचर दल नाशी।
दशरथ के लाल काल,लंक में विराजे।
देखत तव रूप नाथ, रण महाभट लाजे ।
सेना के रंग ढंग, नभ तक गुँजारें।
हरहर हर महादेव, हुमकत उच्चारें।
सुनि सुनि प्रचण्ड घोष,जातु धान कांपें ।
शस्त्र डार समर बीच,लंक राह नापें ।
लख लख तिन तीन लोक, हरष हरष जावें ।
वंदन कर बार बार,रघुपति पद नावें ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
27/12/22