[ कुण्डलिया]
नजर द्वार पर जा लगी , आए कंत की पतियां ।
विरहन के संग में जगी ,हिय हिलोरे बतियां ।।
हिय हिलोरे बतियां , श्रंगार तन का सूना ।
पीला रंग धरती रचे , चंदा आए आँगना ।।
बौरो पर कोयल कुके , भँवरा डोले क्यार ।
“जाफर” स्मृति में खोई , मोहन आए द्वार नजर ।।
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आस लग जाऐ मनवां , रंग लाया मधुमास ।
सरसों फूली गात में , उर ले अति उल्लास ।।
उर ले अति उल्लास , प्राकृति पिया श्रँगार कर ।
अवनि-अंबर मुंदित , मधुऋतु का कर आभार ।।
पायल झंनके पाँव में ,गूँजे बंसती रास ।
सपनीला मन रंगों में , पिया मिलन की आस ।।
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चलन अनोखा चल रहा , बिन घूस नहीं काज ।
पिस्सू बना पहलवान , जो जनता को राज ।।
जो जनता को राज , लूट सकौ दोनों हाथ ।
सेवक हुए स्वामी , दर्शाए जन-मन के साथ ।।
चोर मचाए शोर , विधि -विधान कारे दलन ।
गधा गुड़ खाए रहे , सियार बदल रहे चलन ।।
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शेख जाफर खान