कुण्डलिया
साथ बुरे का दोगे तो खुद भी बुरे कहलाओ।
कोयले की ये कोठरी कैसे खुद को बचाओ।
कैसे खुद को बचाओ बहुत कठिन है भाई।
संगत की रंगत तो हरदम दिखती आई।।
कहे रंजना सुनो न डालो कीचड़ में तुम हाथ।
संतों की संगत करो छोड़ अधम का साथ।।
—रंजना माथुर दिनांक 09/09/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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