कुण्डलिया
अवधू की कुंडलिया
बादल से बरसे सदा , जल सर्बत्र समान |
पर न लाभ वह पा सका ,जो उथला स्थान |
जो उथला स्थान , न वह पानी रख पाया |
बीत गई बरसात, मार कर झख पछताया |
विनत न स्थल बना , गँवाया अवसर का पल |
यह उस थल का दोष ,करे इसमे क्या बादल | |