कुण्डलिया- बिक जाते बिन मोल
कुण्डलिया- बिक जाते बिन मोल
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कविता पढ़कर साथियों, हम जाते हैं हार।
लेकिन आयोजक नहीं, देते पैसे चार।
देते पैसे चार, महज़ माला पहनाते।
कहते कवि मशहूर, और ताली बजवाते।
भरवाते पेट्रोल, स्वयं हम आगे बढ़कर।
बिक जाते बिन मोल, भाइयों कविता पढ़कर।।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 11/12/2019