कुण्डलिया छन्द
कुण्डलिया छन्द,प्रथम प्रयास
प्रतिदिन पाठन कीजिये, मात पिता रख मान ।
यह सब धन बट जात है, नहीं बटे है ज्ञान ।
नहीं बटे है ज्ञान, पढ़ो मन से सब भ्राता।
जीवन में हर क्षण , काम ये अपने आता।
कहते दास “अदम्य , दुखित नर वह विवेक बिन।
रोते हैं हर रोज, जिंदगी में वह प्रतिदिन।
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देखो कैसे कर रहे, पानी सब बर्बाद।
बिन जल के मुमकिन नहीं, जीवन की बुनियाद।
जीवन की बुनियाद, रूठ बैठे हैं बादल।
सूख रहे खलियान, नहीं बरसाते हैं जल।
जीवन है अनमोल , बचाना पानी सीखो।
नहीं तुम्हें विश्वास, बिना जल रहकर देखो।
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रात्री के अंतिम पहर, चलता इक अभियान।
सूर्य उदय से पूर्व ही, उठता सदा किसान।
उठता सदा किसान, खेत की आस लगाए।
मेहनत करे कठिन, खेत में फसल उगाए।
जग का पोषणहार, करे इक बनके दात्री।
श्रम करता है खेत , सुबह से लेकर रात्री।
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■अभिनव मिश्र”अदम्य