कुण्डलिया छंद
ठण्ड बड़ी भारी हुई,कटत नहीं दिन रेन.
कोहरा अपने चरम पर, कैसे पायें चैन.
कैसे पायें चैन, फैसला कौन करे अब.
जाड़े में बरसात , दिखाती हो आँखें जब.
कहें ‘सहज’ कविराय, बढ़ा जाड़े का घमंड.
है गरीब का मरण, सूर्य पर भारी ठण्ड.
@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
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