कुण्डलिया छंद
जागो प्रियवर
जागो प्रियवर मीत रे ,कहे सुनहरी भोर.
चलना है गर आपको , सुखद लक्ष्य की ओर.
सुखद लक्ष्य की ओर ,बढेगें अगर नही हम.
विपदा होय अभेद्य ,न कभी खतम होंगे गम.
कहें ‘सहज’ कविराय , रुको मत भागो प्रियवर.
है लम्बित अभियान , अभी तो जागो प्रियवर .
@डॉ.रघुनाथ मिश्र .सहज.
अधिवक्ता/साहित्यकार.
सर्वाधिकार सुरक्षित