कुण्डलिया छंद
(1)
औरों को दें मान वह,अपनों को दुत्कार।
बनी रीति क्यों आजकल,बोलो मेरे यार।।
बोलो मेरे यार,प्यार का क्योंकर टोटा।
सच्चा है गुमनाम,पूज्य है क्यों अब खोटा।।
कह सतीश कविराय,पदक मिलता बौरों को।
अपनों को दुत्कार,मान वह दें औरों को।।
(2)
सच स्वीकारे कौन अब,सच स्वीकारे कौन।
सच सुनकर झगड़ें सरस,याकि रहें फिर मौन।।
याकि रहें फिर मौन,बात यह बंधु उजागर।
रहें बेर सम मीत,कड़ा भीतर मृदु बाहर।।
कह सतीश कविराय,झूठ पर सब कुछ वारे।
सच स्वीकारे कौन,कौन अब सच स्वीकारे।
(3)
उपदेशों में आदमी,लगा हुआ है आज।
ख़ुद धारे उपदेश तो,सुधरे स्वतः समाज।।
सुधरे स्वतः समाज,काज होवें जनहित के।
हारें स्वयं गिरोह,बंधुवर पाप-अहित के।।
कह सतीश कविराय,होड़ है सब देशों में।
लगा हुआ है आज,आदमी उपदेशों में।।
©सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)