कुण्डलियां
प्रेम सुंदरतम भाव है, जान सके तो जान
कुछ तो इसमें भी पड़कर, तबाह होते नादान
तबाह होते नादान, खुद को अपंग बनाते
परमानन्द के रूप से ही कुण्ठा है पाते
कह अनुज कविराय, मिले सृष्टि के नेम
लगे सुंदर संसार , हो जाए गर प्रेम।1।
समय समय की बात है , समय समय का फेर
जहां चमकता महल था, वहां अब अंधेर
वहां अब अंधेर, उल्लू और वायस बोले
लगा जगत में लॉक, निशाचर डोले
कह अनुज कविराय, बोलो सबसे सविनय
करो नेकी के काम , मिले जब भी समय ।2।
आनन्द आनन्द सब करे, पावे न आनन्द कोय
मंदिर मस्जिद सब ढूंढे, आनन्द भीतर होय
आनन्द भीतर होय, रुककर ध्यान लगाओ
प्रेम, आनन्द, विश्वास, अपने अंदर पाओ
कह अनुज कविराय, रहो सदा सानंद
दुख न टिके क्षण एक, जब अंदर हो आनन्द।